श्री गुरु नानक साहिब की अनोखी शान
एक बार रमणीक पर्वतीय क्षेत्रा में बसे ग्राम रंगरोटे में पूर्णमासी का दीवान सजा हुआ था। सम्पूर्ण वातावरण गुरुवाणी के अमृत कीर्तन से गूँज रहा था। समूह संगत का एक रहस्यमय जादुई प्रभाव से मुग्ध हुई मिलकर ‘शबदों’ का मधुर गायन कर रही थी। एकत्रित संगत अमृत कीर्तन के रस में झूम रही थी। जब कीर्तन-कत्र्ता व संगत मिलकर शब्द-कीर्तन गा रहे थे तो सारी एकत्रित संगत को एवं दैवी सुरीली आवाज़ की ध्वनि अलग सुनाई दे रही थी। यह आवाज़ जादुई प्रभाव डाल रही थी। जब संगत ने बाबा जी से इस रहस्यमयी सुरीली दैवी आवाज़ के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा था-
विचि संगति हरि प्रभु वसै जीउ॥
‘वाहे गुरु’ सत्संगत में निवास करता है तथा निराले ढंग से अपनी उपस्थिति का अनुभव करवाता है। वह सच्चे संतों की संगत में निवास करता है। दयालु श्री गुरु नानक देव जी अमृत कीर्तन-गायन के समय सदैव प्रत्यक्ष रूप में उपस्थित होते हैं। अपने इलाही कीर्तन की ध्वनि से अपने श्रद्धालुओं को रूहानी आनंद की कृपा करते हैं।
जब हम श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की वाणी के शब्दों द्वारा प्रभु का यश गायन करते हैं तो सतगुरु गुरु नानक देव जी बाबा नंद सिंह महाराज के दरबार में उपस्थित संगत की अतृप्त आत्माओं को जीवन-दान देकर तृप्त करते हैं। जहाँ पर भी सत् संगत में सतगुरु नानक देव जी का कीर्तन हो रहा हो, वहाँ पर वे उपस्थित होते हैं।