प्रकृति द्वारा बाबा जी को प्रणाम करना
एक बार देहरादून के जंगलों में बाबा नंद सिंह जी महाराज ने गुरु नानक साहिब का भव्य दरबार सजाया हुआ था। बरसात का मौसम था। आकाश घने गरजते बादलों से ढका था, परन्तु बादलों की भयंकर गर्जना में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था और बाबा जी का संगत को वचन सुनाने का समय हो गया था।
महान् बाबा जी के गरजते आकाश की ओर देखने भर की देर थी कि बादल चारों दिशाओं में बिखर कर लुप्त हो गए। आसमान बिल्कुल साफ हो गया। अब आकाश में पूरा चाँद दिखाई दे रहा था। चाँद की स्नेहिल किरणें घास के ऊपर पड़ रही थीं। प्राकृतिक सौन्दर्य की अद्भुत छटा बिखर रही थी। सर्वत्रा एक सन्नाटा छा गया। हज़ारों की संगत के इस ठाठें मारते समुद्र की यह चुप्पी तो समझी जा सकती थी पर सुविस्तृत जड़-जंगम का यह आचरण स्तब्धकारी था। बाबा जी के पवित्र वचनों के अमृत-प्रभाव से समूची प्रकृति-आकाश, पृथ्वी, जल, थल, पवन, कीड़े-मकोड़े, जीव-जन्तु, पशु पखेरू, वृक्ष, जंगल की वनस्पति- सब कुछ अचल हो गए थे, मंत्रामुग्ध हो गए थे, अभिभूत हो गए थे।
बाबा जी की भौतिक पवित्र उपस्थिति से जो अमृत-प्रवाह उमड़ा था, उसमें पूरी संगत और समस्त प्रकृति भी अभिभूत हो गई थी।
ब्रह्मज्ञानी बाबा जी के दुर्लभ सत्संग में मंत्रामुग्ध होकर बैठना मनुष्यों के लिए एक सहज घटना होती थी। परन्तु बाबा जी के प्रवचनों को सुनते हुए प्रकृति को एक प्रहर तक मंत्रामुग्ध होते और निश्चल-निस्पंद होते देखना एक अनूठा अनुभव था। मेंढक, सियार और सभी पशु-पक्षी एकदम शान्त थे। बादलों के लुप्त होने तथा बिजली की गर्जना बन्द होने के उपरान्त, बाबा जी जब तक प्रवचन सुनाते रहे, पवन-वेग ने भी शोर नहीं किया। इस से यह प्रत्यक्ष रूप में सिद्ध हो जाता है कि सारी प्रकृति, सभी जीव-जन्तु अपने स्वामी (प्रकृति के स्वामी) बाबा नंद सिंह जी महाराज की पवित्र हजूरी में सावधान हो जाते थे। सारी प्रकृति पवित्र रोमांच व उल्लास में रहती थी।
दीवान के समाप्त होने के उपरान्त बाबा जी ने आदेश दिया कि समूह संगत समीप के गाँवों में रात्रि विश्राम के लिए चली जाए। गाँव के जो स्थानीय निवासी, दीवान में उपस्थित थे, वे हाथ जोड़ कर खड़े हो गए तथा उन्होंने इस सेवा के लिए विनम्र निवेदन किया। पिता जी ने एकत्रित संगत को छोटे-छोटे समूहों में बाँट कर समीप के गाँवों के लिए भेज दिया।
सब को भेजने के उपरान्त हम एक स्थानीय सत्संग के साथ गाँव पहुँचे। घर पहुँचते ही एक और चमत्कार हुआ। पिता जी ने ज्यों ही आँगन के अन्दर कदम रखा, उसी समय उन्होंने उँगली के इशारे से कहा कि-
ज़ोर से बिजली चमकी तथा मूसलाधार वर्षा आरम्भ हो गई। सारी रात यह भयानक बिजली चमकती रही तथा वर्षा होती रही।
इस प्रकार की अनेक घटनाएँ हुईं, जिनमें प्रकृति की अलग-अलग शक्तियों के देवी-देवताओं ने अपने गुरु, अपने रूहानी सम्राट, अपने सृजनहार के आगे नतमस्तक हो कर सेवा की थी। प्रकृति बड़ी नम्रता के साथ उन की सेवा में उपस्थित रहती थी।
महापुरुष बाबा जी जब संगतों को प्रवचन सुनाया करते तो चारों ओर सम्पूर्ण शांति छा जाती थी। उनका प्रत्येक शब्द एकत्रित संगत के आखिर में बैठे श्रद्धालु को भी अच्छी तरह समझ आ जाता था। यह वास्तव में रहस्य की बात है कि हवा कैसे धैर्य से बैठे हज़ारों प्राणियों तक प्रभु-सन्देश पहुँचा देती थी। इस दैवी शांति के साथ उनका प्रभु-उपदेश प्रत्येक श्रद्धालु की आत्मा तक पहुँच जाता था।
बाबा नंद सिंह जी महाराज नम्रता की मूर्ति थे। उन्होंने कभी भी प्रकृति में किसी प्रकार का परिवर्तन लाने की कामना प्रकट नहीं की। वास्तव में बाबा जी की हजूरी में प्रकृति स्वयं अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती थी। बाबा जी की सेवा में प्रकृति स्वयं ही अपने नियमों व मार्गों में परिवर्तन कर लेती थी।