मेहरबान साहिब मेहरबान, साहिब मेरा मेहरबान (मिहरवानु साहिबु मिहरवानु। साहिबु मेरा मिहरवानु)
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 724
यह घटना पांचवें दशक के आरम्भिक दिनों की है। मेरी पूजनीया माता जी अत्यन्त बीमार हो गई थीं। उनकी हालत बिगड़ती ही जा रही थी। उन्हें अमृतसर के विक्टोरिया जुबली अस्पताल में भरती कराया गया था, जो अविभाजित पंजाब का उस समय का एक सुप्रसिद्ध अस्पताल था। राष्ट्रीय प्रसिद्धिप्राप्त दो योग्य डाक्टर, डॉ0 के. एल. विज और कर्नल डॉ0 गुरबख़्श सिंह उनका इलाज कर रहे थे। माता जी के लिए एक विशेष कमरे की व्यवस्था की गयी थी। बेहतर इलाज के बावजूद माता जी की तबीयत धीरे-धीरे और बिगड़ती ही जा रही थी और फिर एक दिन वह अचेत हो गयीं। उनकी इस अवस्था के दूसरे दिन डाक्टरों ने उनके स्वस्थ होने की आशा छोड़ दी। पिता जी को यह बता दिया गया कि यदि वे घर पर ही अपनी पत्नी की मृत्यु देखना चाहते हैं तो मरीज़ को छुट्टी दी जा सकती है।
तीसरा दिन भी यूं ही अचेत अवस्था में बीत गया। हम सभी किसी भी क्षण अंतिम श्वास लिए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे कि अचानक उन्होंने अपनी आंखे खोली और अपनी दायीं ओर संकेत करते हुए मेरे पूज्य पिताजी से कहा कि बाबा नंद सिंह साहिब स्वयं पधारे है और उनकी इच्छा है कि मैं आप सबसे विदा लेकर उनके साथ चलूं।
मेरी छोटी बहन बीबी भोला रानी ने बिस्तर के दायीं तरफ़ रखे सोफे़ पर महान बाबा जी के आसन हेतु एकदम साफ़ धुली चादर बिछाते हुए कहा- बीजी, आप बाबा जी से अपने लिए जीवनदान क्यों नहीं माँग लेते?
माता जी ने बाबा नंद सिंह जी महाराज की ओर देखा तथा कहा-
बीबी भोला रानी ने तुरंत कहा-
बीजी ने फिर बाबा जी की ओर देखा तथा कहा कि
ऐसा कहने के साथ ही माता जी उठ कर बिस्तर पर बैठ गयीं। हम सभी श्रद्धा और आश्चर्य से भर उठे। हम सभी ने बाबा जी के पवित्र आगमन और उपस्थिति से वातावरण में व्याप्त दिव्यता को अनुभव किया।
पिता जी ने अपनी कार मंगवाई और पुलिस इन्स्पेक्टर स. मेहर सिंह को अस्पताल के बिलों के भुगतान के विषय में ज़रूरी निर्देश दिए। तत्पश्चात् माता जी को साथ लेकर हम लुधियाना के लिए रवाना हो गए।
घर में आकर माता जी ने साधारण काम-काज करना शुरु कर दिया। सभी बहुत प्रसन्न थे। बीबी भोलां रानी ने माता जी को सुझाव दिया कि हम इस बार फिर बाबा जी से लम्बी आयु के लिए विनती करेंगे। तत्पश्चात बाबा जी ने फिर एक बार माता जी को दर्शन दिए और फरमाया कि वे जितनी चाहें उतनी आयु प्रदान कर सकते हैं, किन्तु पहले उन्हें (माता जी को) वह स्थान अवश्य देख लेना चाहिए, जहाँ बाबाजी उन्हें ले जाना चाहते हैं। बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र धाम के दर्शन कर लेने के बाद माता जी की जीवन दृष्टि में आश्चर्यजनक परिवर्तन दिखाई देने लगा। वे एक अनूठे धैर्य, दिव्य कृपा और अलौकिक प्रेम से भरे संसार में विचरण करने लगी थीं।
उन्होंने पिता जी को इस दिव्य अनुभव के विषय में बताया और कहा कि अब वे इस संसार को त्यागने की इच्छा रखती हैं।
छह मास पूरे होने पर पिताजी ने कीर्तन की व्यवस्था की। निश्चित समय आ पहुँचा था। समयानुसार सच्चे पातशाह श्री गुरु नानक साहिब और बाबा नंद सिंह जी महाराज कृपास्वरूप पधारे। पिताजी ने माताजी से उनकी अन्तिम इच्छा के बारे में पूछा। उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि उनकी जीवन-मुक्ति (शरीर-त्याग) के बाद उनके द्वारा संचित पाँच हजार रुपए व उनके गहनों से प्राप्त राशि महान बाबा जी की सेवा को समर्पित व खर्च की जाए।
मेरी बड़ी बहन अजीत कौर के अतिरिक्त, शेष सभी बच्चे, जिनमें मेरी दो छोटी बहनें भी शामिल थीं, विवाह योग्य थे। पर, माता जी के मन में संसारी रिश्तों का मोह नाम मात्रा को भी दिखाई नहीं दे रहा था। महान बाबा जी ने उनको सांसारिक मोह-माया जाल से मुक्त कर दिया था। वे बाबा नंद सिंह जी महाराज के प्रति अपने सच्चे प्यार और भक्तिभाव में डूब कर संसारी बंधनों को भूल गयीं थी।
यह एक भव्य अन्तिम यात्रा थी। एक दरगाही पालकी में श्री गुरुनानक पातशाह और बाबा नंद सिंह जी महाराज के श्रीचरणों में विराजमान होकर माता जी इस मृत्यु-लोक से विदा हुई थीं। सचखण्ड की सच्ची यात्रा का यह एक सच्चा व आनन्दमय दृष्टान्त था। दुनिया से विदा लेते और बाबा नंद सिंह जी महाराज के श्रीचरणों में निवास करते समय माता जी के चेहरे पर प्रसन्नता एवं आनन्द के अलौकिक भाव आश्चर्यजनक रूप से झलक रहे थे। उस समय माताजी के दर्शन, साक्षात् महान देवी के दर्शन सरीखे थे। वह देवी माता, जो बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरणों में निवास किए हुए थी। यह बाबा नंद सिंह जी महाराज के श्रीचरणों तथा उनकी कृपा का ही कमाल था। यह पिताजी तथा हम सबके लिए आश्चर्यजनक अनुभव था। मेरे मित्रा स. राजिन्दर सिंह के पिता जी, जो मेरे घर पहली बार आए थे और संगत में बैठे हुए थे, उन्होंने भी पवित्र कीर्तन का श्रवण करते इस घटना वृत्तान्त को अपनी आँखों से देखा और हृदय से अनुभव किया था।
उन्होंने इस अनुभव को ठीक उसी तरह सुनाया, जैसा हम महसूस कर रहे थे।
मरने ही ते पाईऐ पूरनु परमानंदु।।
सतगुरु के आशिक कभी मृत्यु से नहीं ड़रते।
उनके लिए मृत्यु भी परमानन्द को प्राप्त करने वाली एक स्थिति है।
एक दिन बाबा नरिन्दर सिंह जी ने दास को सम्बोधित करते हुए फरमाया-
अहं को मृत्यु से ड़र लगता है।
एक आध्यात्मिक जिज्ञासु, एक सत्य का अभिलाषी मृत्यु को जीतने की उम्मीद रखता है।
एक भक्त मृत्यु से प्रेम करता है।
परन्तु एक सच्चे संत के लिए मृत्यु ही जीवन है, क्योंकि वह जानता है कि असली जीवन मृत्यु के उपरांत ही शुरू होता है।
एक सच्चे ईश्वर प्रेमी के लिए शारीरिक मृत्यु परम-आनन्द है।
सच्चे ईश्वर प्रेमी मृत्यु से प्रेम करते है क्योंकि मृत्यु ही उन्हें आनन्दपूर्ण, अमर जीवन की ओर ले जाती है।
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सेवक-रक्षा के अपने प्रण की लाज रखी।