काल विषयक ज्ञान
इकु तिलु नहीं भंनै घाले
मार्च 1979 में अपने आवास-आफ़िसर्स मेस दिल्ली छावनी के पते पर मुझे एक टेलीग्राम मिला कि पिता जी बहुत बीमार हैं और उन्हें खून की उल्टियाँ हो रही हैं। मैंने उसी समय अपने वरिष्ठ अधिकारी से फो़न पर सम्पर्क किया और उनसे अवकाश लेकर चण्डीगढ़ के लिए रवाना हो गया। अगले ही दिन मैं चण्डीगढ़ पहुँच गया। पिताजी के पास पहुँच उन्हें प्रणाम करके मैं उनके निकट बैठ गया। पिताजी ने मेरी ओर देख कर कहा कि चिन्ता करने की कोई बात नहीं। शाम को जब मैं उनके पास बैठा तो उन्होंने मेरे सामने एक आश्चर्यजनक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि-
कल जैसे ही वे स्नान के लिए स्नान-घर में गए तो वहाँ एक अत्यन्त खूबसूरत स्त्री को खडे़ पाया। मैंने जब उस से पूछा-बीबा, तुम कौन हो और यहाँ क्यों आई हो तो जवाब में उसने कहा-
इस पर मैंने कहा कि
तो उस का उत्तर था-
मैंने फिर उस से कहा कि तुम बाबा नंद सिंह जी महाराज से अनुमति लेकर आ जाओ, मैं तब तक तैयारी कर लेता हूँ। इतना सुनते ही वह औरत अदृश्य हो गयी।
स्नान करने के बाद अपने आसन पर बैठ कर मैंने ‘सिमरन’ (नाम जप) शुरु किया ही था कि तभी बाबा नंद सिंह जी महाराज प्रकट हो गए। मैंने उनके चरणों में, प्रणाम अर्पित किया तो वे मुस्कुरा कर कहने लगे-
फिर पिता जी ने बताया कि हमारी ऐसी अवस्था (खून की उल्टी) को देख कर ही घर के सदस्यों ने तुम्हें टेलीग्राम भेजा था। खैर! तुमने यहाँ आ कर अपना फ़र्ज निभा दिया है।
पर, याद रखना कि बाबा नंद सिंह जी महाराज की इजाज़त के बिना काल कुछ भी नहीं कर सकता।
इसके बाद बाबा नरिन्दर सिंह जी ने कुछ बातें और समझाईं जो इस प्रकार है-
जहाँ प्रभु का ‘सिमरन’ (नाम-जप) प्रकट हो जाए, वहाँ प्रकृति और काल हाथ जोड़ कर आज्ञा में बँधे खड़े हो जाते हैं।
‘सिमरन’ से ही समय तथा काल प्रकट हुए हैं, पर समय और काल से ‘सिमरन’ प्रकट नहीं हुआ।
बाबा नंद सिंह जी महाराज में यह सिमरन इस प्रकार प्रकट है जैसे संसार पर सूर्य प्रकट है। सूर्य कभी छिपता नहीं। उसका प्रकाश सदा के लिए है। इसी प्रकार प्रकट हुआ ‘सिमरन’ भी शाश्वत की अवस्था है। यह छिपने या मिटने वाली अवस्था नहीं है।
बाबा जी को अन्तर्धान हुए आज लगभग 36 साल हो गए हैं। नाम और सिमरन के अवतार, जिन के रोम-रोम में प्रभु-सिमरन प्रकट हुआ था, जिनके 7 करोड़ रोम-रन्ध्रों में नाम की ज्योति जगमगा रही थी, उन बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरणों में सम्पूर्ण सृष्टि बंधी हुई थी, आज भी बंधी खड़ी है और भविष्य में भी सदा के लिए बंधी खड़ी रहेगी। बाबा नंद सिंह जी महाराज ने बड़ी विनम्रता से कह दिया है कि गुरमुख सदा जीवित रहते हैं। बाबा जी स्वयं निरंकार स्वरूप परमात्मा थे। गुरमुख और ब्रह्मज्ञानियों को उत्पन्न करने और शोभित करने वाले थे। उनकी आध्यात्मिक अवस्था की एक झलक पाने के लिए तो संत भी लालायित रहते हैं। जब बाबा नंद सिंह जी महाराज के दर्शन हों तो वहाँ काल भी एक तुच्छ सेवक की भांति हाथ जोड़े उनके आदेश में बँधा हुआ दृष्टिगत होगा। पिताजी ने कुछ और रहस्यपूर्ण बातें भी बताईं।
निरंकार और माया-
केवल एक ब्रह्मज्ञानी ही दोनों परिस्थितियों के भेद को जान सकता है।
जब हृदय में ईश्वारानुभूति (दर्शन) हों तो उस अनुभव से शिक्षादायक बातों को ही मन में सहेज लेना चाहिए। शेष बातों को गुरु-चरणों में मस्तक झुका कर अर्पित कर दो, क्योंकि यह मन गंदगी का कुआँ है और गंदगी में दर्शन टिक नहीं सकते।
जिस प्रकार बाबा जी के रोम-रोम में ‘सिमरन’ प्रकट है और रोम-रोम में नाम की ज्योति जगमगा रही है, उनके सम्पूर्ण दर्शनों से सिमरन की ज्योति का प्रकाश फूट-फूट कर सूर्य-किरणों की भांति बाहर आ रहा होगा।
इस प्रकाश को बड़े-से-बडे़ तपस्वी भी नहीं सहन कर सकते तो एक साधारण मनुष्य किस प्रकार सहन कर सकेगा। क्योंकि उनका (बाबा जी का) पावन शरीर उस समय केवल प्रकाश और ज्योति स्वरूप होता है, जिस प्रकाश और ज्योति-स्वरूप के सामने लाखों-करोड़ों सूर्यों और चन्द्रमाओं की ज्योति भी मद्धम पड़ जाती है।