श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पाठ का प्रसाद बाँटना
अपने महान् अवतार द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब जी के सन्देश को प्रचारित करने के लिए उन्हें ईश्वरीय नियुक्ति प्राप्त हुई थी। उस अद्भुत आनंद का उन्होंने दूर-दूर तक प्रसार किया। मानवीय श्रम की सीमाओं को भी पार कर उन्होंने इस दिव्य सन्देश को स्थान-स्थान पर पहुँचाया था।
उन्होंने बहुत उत्तम ढंग से श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को श्री गुरु नानक देव जी की ही सदेह अभिव्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के आशीर्वाद सर्वश्रेष्ठ हैं। बाबा जी निम्नलिखित विधि अनुसार महीने में एक बार श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ करके गुरु घर के आशीर्वाद प्राप्त करने का उपदेश देते थे:
- एक महीने में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का एक पूरा पाठ करना।
- एक महीने में श्री सुखमनी साहिब के 50 पाठ करना। दिन में दो बार श्री सुखमनी साहिब का पाठ करना।
- एक महीने में जपुजी साहिब के 250 पाठ करना। दिन में जपुजी साहिब के दस पाठ करना।
- एक महीने में मूल मंत्रा (‘एक ओंकार’ से ‘नानक होसी भी सच’ तक) की 180 माला (एक सौ आठ मनके वाली) करनी। छः माला प्रतिदिन करनी।
- प्रतिदिन गुरु मंत्र‘वाहेगुरु’की 180 माला करनी। अगर एक मनके से चार बार‘वाहेगुरु’ कहा जाए तो 20 माला करनी।
- प्रतिदिन ‘राम’ नाम की 160 माला करनी। अगर एक मनके से चार बार ‘राम’ कहा जाए तो 40 माला करनी।
एक बार बाबा जी ने एक मुस्लिम को इसी विधि के अनुसार ‘अल्लाह’ शब्द का अभ्यास करने की प्रेरणा दी थी। इसी प्रकार उन्होंने अपने जीवनकाल में लाखों श्रद्धालुओं को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के लाखों पाठों का प्रसाद बाँटा, तब से अब तक यह वितरण-कार्य निर्विघ्न चल रहा है।
इस प्रकार उन्होंने शिक्षितों अशिक्षितों विद्वानों तथा मूर्खों, ज्ञानियों, अज्ञानियों व साधारण ग्राम-निवासियों को गुरु नानक साहिब के प्रत्यक्ष स्वरूप श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के महान् आशीर्वादों से सम्पन्न करवा कर नाम-महारस की कृपा की थी। श्रद्धालु जन इस सरल विधि द्वारा अमृत नाम व श्री गुरु नानक साहिब की महिमा का यश गाने लगे।
उनके पवित्र जीवन का यही मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने समूह-संगत के सामने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की अनूठी महिमा का, शाश्वत दिव्यता का उद्घाटन किया। बाबा जी ने नाम महारस के दुर्लभ खज़ाने सबके लिए खोल दिए। यह विधि बहुत ही सरल थी तथा साधारण गाँव वासियों ने भी इसको आसानी के साथ समझ कर नाम की कमाई की। उन्होंने ‘सच-खंड’ तक ले जाने वाले इस दरगाही अधिकार-पत्रा का मुक्त वितरण किया।
बाबा जी अगस्त सन् 1943 में इस संसार से दैहिक रूप में अलोप हो गए पर उनके द्वारा बाँटे गए ‘दरगाही आदेशपत्रा’ व प्रसाद से वह आज भी साक्षात् रूप में विचरण कर रहे हैं। सन् 1947 के बंटवारे के समय दोनों ओर से आने वाले लाखों शरणार्थियों को अपने रक्षक बाबा नंद सिंह जी महाराज की नित्य उपस्थिति के साथ इस ‘दरगाही टिकट’ व ‘दरगाही नाम’ की चमत्कारी शक्तियों की अनुभूति हुई थी, अतएव वे उनकी कृपा से ही बच सके थे। उनके द्वारा वितरित नाम की यह अनोखी शक्ति थी।
जिनके पास यह प्रसादरूपी अनोखा दरगाही अधिकार पत्रा था, वे मौत के भयानक नाच से गुज़रे, पर उनमें से कोई भी व्यक्ति घायल नहीं हुआ था तथा न ही किसी की कोई हानि हुई थी। ‘दिव्य टिकट’ का आशीर्वाद प्राप्त करने वालों की अप्राकृतिक मृत्यु नहीं हुई थी।
यह सब बाबा नंद सिंह जी महाराज की कृपा थी। बाबा नंद सिंह जी महाराज ने प्रभु का यह अनोखा प्रसाद लाखों प्राणियों को बाँटा था। गुरुमंत्रा, मूलमंत्रा, जपुजी साहिब, सुखमनी साहिब व राम-नाम का अनोखा प्रसाद वितरण करने के साथ-साथ वे हिन्दुओं व मुस्लिमों को क्रमवार श्रीमद्भगवद् गीता व पाक कुरान शरीफ के पाठ करने का प्रसाद भी बाँटते थे।
‘नाम’ पर गिने चुने व्यक्तियों का ही अधिकार नहीं था। जाति-पांति, धर्म व रंग-भेद होते हुए भी नाम का प्रसाद सब के लिए था।
श्री गुरु नानक साहिब जी के सिद्धांतों के प्रचार के कारण साधारण व सीधे-सादे गाँववासी भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब की दया प्राप्त करने और रूहानी संतुष्टि की रहस्यमयी अनुभूति करने लगे थे। इस प्रकार बाबा जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा तथा निजी सेवा के महान् आदर्शों को स्थापित किया। बाबा जी ने लाखों अशिक्षित लोगों को सरल विधि द्वारा आत्मिक शांति प्राप्ति करने का मार्ग दिखाया। अभ्यास करने वाले ही जानते हैं कि यह आत्मिक साधना कितनी महान् व फलदायक है।