श्रेष्ठ दिव्य क्रीड़ा एवं अपार लीला
बाबा नंद सिंह जी महाराज बाल्यकाल से लेकर अन्तिम समय तक परमात्मा की नाम-भक्ति में लीन रहे। वे पहले धर्मात्मा पुरुष थे, जिन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में प्रभु को समक्ष रूप में देखना चाहा। वे अपने प्रभु-प्रीतम से व्यक्तिगत रूप में बातचीत तथा उनकी सेवा करना चाहते थे। वे सिद्धांत व विश्वास से ही संतुष्ट नहीं थे। बाल्य-अवस्था से ही प्रभु-प्राप्ति की उनकी अभिलाषा प्रत्यक्ष रूप में झलकती है। बाबा जी निरंतर प्रभु-सिमरन व भक्ति की अवस्था में लीन रहते थे।
पिछले सैंकड़ों वर्षों से श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को आदर सहित कड़ाह प्रसाद भेंट किया जाता है। बाबा जी केवल कड़ाह प्रसाद तक ही सीमित नहीं थे, वे इसकी व्यावहारिक व निश्चित स्वीकृति की चेष्टा करते थे। वे कोरी कल्पना या कोरे कर्म-कांड पर विश्वास नहीं रखते थे। वे श्री गुरु ग्रंथ साहिब में विश्व गुरु के प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहते थे। वे प्रभु को जीवित सत्य की तरह प्रेम करते थे, उस पर उनको केवल काल्पनिक विश्वास नहीं था। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिए उन्होंने जीवन को दाँव पर लगा दिया था। प्रेम-स्वरूप गुरु नानक साहिब जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब से दैहिक रूप में प्रकट होकर बाबा नंद सिंह जी महाराज के प्रेमपूर्ण प्रसाद को भोग लगा कर स्वीकार किया।
बाबा हरनाम सिंह जी महाराज की अपार कृपा व आशीर्वाद के कारण बाबा नंदसिंह जी महाराज ने संगतों को भी गुरु नानक देव जी के प्रत्यक्ष दर्शन करवाए। उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के विश्व नूर को, अनन्त काल तक जीवित रहने वाले गुरु की तरह होने के विश्वास को, इस तरह दृढ़ किया था कि आज यह धारणा सम्पूर्ण विश्व को रूहानी रंगत प्रदान कर रही है।
यह बहुत निराली, अनोखी व विशेष बात है कि पूज्य बाबा जी को बाल्यकाल से ही प्रभु-भक्ति का आशीर्वाद प्राप्त था। रूहानियत के समुद्र बाबा जी ने सम्पूर्ण मानवता पर अपनी कृपाओं व आशीर्वादों की वर्षा की थी। बाबा नंद सिंह जी महाराज की अपार कृपाओं के विशाल क्षेत्रा व आशीर्वादों के भंडार होना इस बात का संकेत है कि प्रभु स्वयं सशरीर पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे। उन्होंने इस सृष्टि के जीवों को अनेक बंधनों से मुक्त किया। इस पवित्र कार्य को महान् मसीहा तथा प्रेम का पैगम्बर ही कर सकता है।
दास ने भारी एकत्रित संगतों के बीच बाबा नंद सिंह जी महाराज की रूहानी शक्ति के कार्यों के कई बार दर्शन किए हैं। उनकी दृष्टि जंगली जीवों पर भी पड़ती थी। दास ने बाबा जी की पवित्र हजूरी में महान् रूहानी दृश्य व चमत्कार देखे थे। मुझे उन शंकालु लोगों पर आश्चर्य होता है, जो महान् सतगुरु नानक जी के रूहानी चमत्कारों पर संदेह करते हैं।
बाबा जी की आत्मिक शक्ति व सामथ्र्य उस आत्मसिद्धि से बिल्कुल भिन्न है जो साधारण संत या फकीर प्राप्त कर लेते हैं, बाबा जी यह प्रभु-भक्ति व शान दरगाह से ही लाए थे। बाबा जी जहाँ भी गए, जो भी प्राणी उनको मिले, उन्होंने सब का उद्धार किया। उन्होंने प्राण-दान भी दिए व शुष्क स्थानों को जल से हरा-भरा किया। उनकी हजूरी की सूर्य किरणें जिन भी आत्माओं व हृदयों पर पड़ती थीं, वे श्री गुरु नानक साहिब के अमृृत नाम में डूब जाती थीं। उन के मुखारविन्द से कभी भी ‘हम’ या ‘हमारा’ शब्द नहीं निकला था। पूरी श्रद्धा व अर्पित जीवन में ‘हमारा’ कभी भी प्रधान नहीं होता। मेरा निश्चय है कि इस विश्व में बाबा जी की तरह आत्म-त्याग व आत्म संयम का उदाहरण कहीं और नहीं मिल सकता है।
नमस्कार है उन की महान साधना को!!
नमस्कार है उन की मर्यादा को!!!
नमस्कार है उन के आत्म-संयम को!!!!
सच्ची भक्ति के लिए पूर्ण वैराग्य व पूर्ण त्याग की आवश्यकता है। बाबा नंद सिंह जी महाराज वैराग्य व त्याग की सभी संभव सीमाओं को पार कर चुके थे। वे तन-मन से गुरु ग्रंथ साहिब से जुड़ गए थे। आप श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की भक्ति का उत्तम उदाहरण व गुरु नानक जी की भक्ति के मार्ग के देवदूत थे।