एक मुसलमान थानेदार की आपबीती
एक बार एक मुसलमान थानेदार ने मेरे पिता जी को एक आपबीती घटना सुनाते हुए बताया कि एक बार वह सन् 1942 में अपने पीर के दर्शन करने के लिए होशियारपुर गया हुआ था। यह मुसलमान पीर अपनी वार्षिक पेफरी पर मियाँ वाली होशियारपुर आए हुए थे। उस पीर जी ने अपने थानेदार सेवक को कहा, “हमारे सरताज (फकीरों व दरवेशों के बादशाह), दैवी ज्योति के महान् सूर्य, हमारी शारीरिक आँखों से ओझल होने वाले हैं। जाओ! जाकर समयानुसार इस निरंकारी ज्योति के दर्शन करके भाग्यशाली बन जाओ।” यह आदेश सुनकर मुसलमान थानेदार बाबा जी की कुटिया (अब नानकसर) पहुँच गया। वह बड़ी नम्रता से संगत के पीछे बैठ गया। बाबा जी ने एक सेवक भेजकर उस को आगे आकर बैठने के लिए कहा। अन्तर्यामी बाबा जी ने उस का नाम ले कर पुकारा तो वह चकित रह गया। बाबा जी ने उस से पीर जी का मंगल-समाचार पूछा। थानेदार ने बाबा जी के चरणों में नतमस्तक प्रणाम किया तथा मुँह से या अल्लाह! या अल्लाह! कई बार कहा। ऐसी थी बाबा जी की दूसरे धर्मों व विश्वासों के अनुयायियों के प्रति आध्यात्मिक अनुराग भावना!