बेबे नानकी व गुरु नानक पातशाह
‘प्रेम नेम दे बनियाँ नू भन्न के आगै लंघ जाँदा है।’ अर्थात् प्रेम, नियम के बंधनों को तोड़कर आगे बढ़ जाता है।
गुरु नानक साहिब के पवित्र प्रेम का यह निरन्तर विकास था। बेबे नानकी जी की सहज स्वाभाविक प्रीति और तड़प ने ही स्वीकृति और प्रतिक्रिया को आकर्षित किया। पवित्र प्रेम असीम है, और इसे किसी प्रकार के आध्यात्मिक नियमों और विधि-निषेधों की आवश्यकता नहीं होती। सच तो यह है कि सच्चे प्रेम के मार्ग में नियमों की कोई भी रुकावट नहीं। इस प्रकार ‘प्रेम का पंथ’ विशेष और निराला बन जाता है। अपने प्रियतम प्यारे की ओर जाने के लिए यह स्वतंत्रा होकर सभी सीमाओं और बंधनों को पार कर जाता है। सतगुरु नानक जी के प्रेम स्वरूप की पूजा ही सच्ची प्रार्थना है। प्यार भरी याद संसार भर के आवाजाही के साधनों की तुलना में तेज रफ़्तार से चलती हुई पहले पहुँचती है। इस की पहुँच तार, चिट्ठी, टेलीफोन, रेडियो और बिजली की लहरों से भी तेज़ होती है। ऐसा प्यार स्थान और समय पर निर्भर नहीं होता। यह प्यार परमात्मा की तरह ही पवित्र है। यह प्रेम युगों-युग अटल और नित्य है।
जुगु जुगु रही समाइ।।
ऐसे प्यार के गुणों और विशेषताओं का बयान नही किया जा सकता क्योंकि इसकी कोई परिभाषा नहीं है।
मानव के रूप में गुरु ही प्रभु-प्रेम है। वह पूर्ण रूप से ईश्वरीय प्रेम की प्रत्यक्ष मूर्ति है। एक सिख में वह सच्ची नम्रता और प्रेम की तड़प की तीव्रता को परखता है। श्री गुरु गोविन्द सिंह जी ने बहुत ही सशक्त शब्दों में फ़रमाया था-
अपने प्यारे के सच्चे प्रेम में बहाये गये निरन्तर अश्रु मन के अहंकार का पूरी तरह नाश कर देते है। ईश्वरीय प्रेम के आत्मिक क्षेत्रा में प्रवेश पाने के लिए पूर्ण समर्पण भाव सबसे ज़रूरी है। इसके बाद ही प्यारे सतगुरु के महान् दरवाजे खुलते है।
संगत में पिताजी हमेशा फ़रमाया करते थे कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी जीते-जागते भगवान् हैं, और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के दैवी शरीर में से श्री गुरु नानक देव जी को प्राप्त किया जा सकता है। उनकी प्रत्यक्ष उपस्थिति अनुभव की जा सकती है। विरले भाग्यवान ही उनके प्रत्यक्ष शाररिक रूप में दर्शन करते हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिए नम्रता और प्रेमाभक्ति ही सर्वदा ज़रूरी है। परम नम्रता, अथाह तड़प और प्रेम उनका अपना निजी अनुभव था। सर्वोच्च प्रभु श्री गुरु नानक साहिब जी के साथ केवल प्रेम के द्वारा वार्तालाप स्थापित हो सकता है। ऐसी प्राप्ति के लिए कोरी बौद्धिकता को छोड़कर नम्रता, चट्टान-सरीखा दृढ़ विश्वास ओर सच्ची प्रेमाभक्ति आवश्यक है।
दैवी प्रेम की पवित्र भावना तो पहले से ही हृदय में होती है। दुर्भाग्यवश यह प्रवृत्ति सगे संबंधियों, पदार्थीय सुखों, नाम व प्रसिद्धि, सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति और नश्वर पदार्थों की ग़लत दिशा में लगी होती है।
एक सच्चे प्रेमी की अपने प्यारे तक पहुँचने की तड़प इतनी शक्तिशाल होती है कि कोई भी अड़चन इसको रोक नहीं सकती। अपने प्यारे के मिलाप से पहले यह रुकती नहीं। इसकी गति बहुत तीव्र होती है।