उस्तत निंदा
and criticise and condemn only oneself.
Third person should not come in.
हमारे स्वभाव के दो रूप हैं- हम किसी की प्रशंसा करते हैं, किसी की आलोचना करते हैं। हम अपनी पसंद के व्यक्तियों की स्तुति करते हैं तथा जो व्यक्ति हमें पसन्द नहीं उनकी निंदा करते हैं। हमारे जीवन का बहुत-सा समय इन लोगों की स्तुति व निंदा तथा इन से प्राप्त सुख, या दुःख के अनुभवों में व्यतीत हो जाता है। गुरु-चेतना में लीन ध्यानी स्तुति व निंदा दोनों से दूर रहता है।
मनुष्य को स्तुति व निंदा दोनों का त्याग करना चाहिए।
बाबा नंद सिंह जी महाराज शिक्षा देते हैं कि स्वभाव के दोनों रूपों को प्रभु-चरणों में लगाना चाहिए। श्री गुरु नानक साहिब जी के स्तुति का गायन करना चाहिए तथा अपनी कमियों व गलतियों तथा पापों की आलोचना करनी चाहिए। प्रशंसा (स्तुति) केवल गुरु नानक की करो- निंदा केवल अपनी करो। तीसरा कोई अन्य नहीं आना चाहिए। आत्म-निरीक्षण, अन्तः परीक्षण तथा आत्म-मूल्यांकन से हमें अपनी निंदा-योग्य त्रुटियों व गलतियों का ज्ञान होता है।