गुरु की गोद
1. गुरु की गोद, गोर (कब्र) है, सिख मुर्दा है। गोर आमंत्राण देती है- ‘तैनूँ गोर निमाणी वाजाँ मारदी, घर आ जा निघरिया’ अर्थात् ‘हे सिख! गुरु की विनयशील गोद रूपी गोर तुझे पुकारती है, तेरा और घर नहीं है, यही घर है, तू आ जा।’ गोर (कब्र) कहती है कि मैं तेरे तीन काम करूँगी। मैं गोर हूँ और मुर्दे के लिए कोई और जगह नहीं। मैं तुम्हें स्थान दूँगी। दूसरा कार्य यह कि मैं तुम्हें पर्दे में ढकूँगी, लोक-परलोक के तुम्हारे पर्दे ढकूँगी। तीसरा कार्य मैं यह करूँगी कि जो कुछ भी हूँ, वहीं मैं तुम्हें बना लूँगी। मैं मिट्टी हूँ, तुम्हें भी अपने रूप-गुण में ढाल लूँगी। सिख गुरु की गोद में आ गया। बेघर को जगह मिली। यह गोद सिख के लोक-परलोक के पर्दे ढकेगी। उसे अपना रूप भी देगी। सिख गुरु रूप ही हो जायेगा।
‘तैनूँ गोर निमाणी वाजाँ मारदी,
घर आ जा निघरिया।।’
-बाबा नंद सिंह जी महाराज
2. पुत्र माँ की गोद में है। माँ परदेश चली जाती है। देस-परदेस माँ के लिए है, पुत्रा के लिए कैसा देस-परदेस; वह तो माँ की गोद में बैठा है। समय पर दूध मिल जाता है उसकी देखभाल हो जाती है। देस-परदेस तो माँ के लिए होगा। सिख ने अपने आपको इष्टदेव के सम्मुख न्यौछावर कर दिया है। गुरु की गोद में बैठा है। अब चाहे वह देस में हो या परदेस में सब स्थानों पर मालिक ही उसका रक्षक है।
-बाबा नंद सिंह जी महाराज