नाम - 2
आहु धोपै नावै कै रंगि।।
पवित्र मन आन्तरिक आनंद का प्रतिबिम्ब और अमर संगीत का घर है। इस पवित्र मन-मंदिर में नाम और दैवी प्यार बसता है।
सच्चे मन के माध्यम से आत्मतत्व प्रकट-प्रकाशित होने लग जाता है और फिर आत्मा की सच्ची पवित्रता, गौरव और आनंद को उत्साहित करता हुआ ऐसा मन आनंद और शुद्धता का स्रोत बन जाता है।
आत्मा ही मन का सच्चा दैवी निवास स्थान है। आत्म-तत्व में किया गया दिव्य स्नान मनुष्य को अलौकिक भाव-विभोरता से भर देता है।
जो मन अपने अन्तर में अपने मूल स्रोत आत्म तत्व की पहचान कर लेता है वह अपने नाम और शरीर के साथ जुड़े हुए झूठे नातों से अपने आपको मुक्त कर लेता है।
आत्म तत्व अति पवित्र तीर्थ यात्रा है। आत्म तत्व में अवगाहन (स्नान) करना ही महान् सच्च है।
जा आतम तीरथि करै निवासु।।
पूर्णमासी वाले दिन लाखों श्रद्धालुओं को दिव्य नाम का प्रसाद बाँटा जाता था और आने वाली पूर्णमासी तक पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के हजारों पाठ पूरा करने की यह प्रक्रिया हर महीने दोहरायी जाती थी। इस पवित्र यज्ञ में हिन्दू और मुसलमान भाई पूरी उत्कंठा से ‘राम’ और ‘अल्लाह’ के दिव्य नामों से जुड़ जाते थे। सभी व्यक्ति परिवार समेत पूरी तत्परता और लगन से शामिल होते थे। इस वर्धनशील क्रिया को निरन्तर बढ़ाने हेतु एक सौ आठ मनकों की माला की जप-विधि सहायक होती है। दिव्य नाम को ज़ोर-ज़ोर अथवा चुपचाप जपने-दोहराने की अपेक्षा मन में जपना और दोहराना अधिक लाभदायक है।