सतगुरु की परख कसौटी :
प्रेमभाव का मापक
प्रेमभाव का मापक
सतगुरु सिख को एक थर्मामीटर लगाकर परखता है। वह जिस एकमात्रा दिव्य गुण की परख-पड़ताल करता है, वह है केवल सच्चा प्रेम।
प्रेम के इस खेल में, हृदय में सच्चे प्रेम की तीव्रता व शुद्धता ही मायने रखती है। इस दिव्य प्रेम का एक उत्कृष्ट उदाहरण बाबा नंद सिंह जी महाराज की वह बेमिसाल भक्ति है जोकि बालपन के पाँचवे साल में ही प्रकट हो गयी थी। बाबा नंद सिंह जी महाराज के इस परम प्रेम ने लाखों जीवों का उद्धार किया है और भविष्य में भी अपनी परम कृपा से लाखों जीवों को पार उतारते रहेंगे।
अहं (अहंकार) शरीर का एक अभिन्न अंग है। शरीर तो एक बाहरी खोल या पोशाक की तरह है। इसलिए सतगुरु की दृष्टि में शारीरिक सुन्दरता का कोई महत्त्व नहीं है। भगवान राम भीलनी (शबरी) की सच्ची भक्ति के प्यासे थे। भले ही भीलनी देखने में कुरूप थी, फिर भी भगवान राम उसके झूठे बेरों के लिए व्याकुल थे, क्योंकि वे केवल उसके प्रेम का पान करना चाहते थे। भगवान राम के प्रति उस भीलनी का सहज व निर्मल प्रेम अद्वितीय था।
अहं (अहंकार) शरीर का एक अभिन्न अंग है। शरीर तो एक बाहरी खोल या पोशाक की तरह है। इसलिए सतगुरु की दृष्टि में शारीरिक सुन्दरता का कोई महत्त्व नहीं है। भगवान राम भीलनी (शबरी) की सच्ची भक्ति के प्यासे थे। भले ही भीलनी देखने में कुरूप थी, फिर भी भगवान राम उसके झूठे बेरों के लिए व्याकुल थे, क्योंकि वे केवल उसके प्रेम का पान करना चाहते थे। भगवान राम के प्रति उस भीलनी का सहज व निर्मल प्रेम अद्वितीय था।
एक सच्चा भक्त ही ईश्वर के निर्मल प्रेम का माध्यम होता है उसमें से ही ईश्वरीय प्रेम और अमरत्व का अमृत प्रवाहित होता है।
श्री गुरु नानक साहिब जी की सत्कारयोग्य बहन बेबे नानकी जी ने कभी अपने भाई को कोई तार या पत्रा नहीं भेजा था। एक प्रेम भरी याद ही परम प्रिय और पूजनीय नानक साहिब जी के लिए तत्काल प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त थी। सच्चा प्यार समय और स्थान की सभी सीमाओं और बाधाओं को पार कर जाता है। सतगुरु दिव्य प्यार को देने वाला सच्चा दाता है। बदले में वह अपने सच्चे श्रद्धालुओं व सिखों से भी केवल सच्चा प्यार ही चाहता है।
सदा सदा तिस गुर कउ करी नमस्कारु।।
परमात्मा और गुरु, केवल एक ही वस्तु के लिए व्याकुल रहते हैं और वह वस्तु है- विशुद्ध दुर्लभ प्रेम।
परमात्मा, सतगुरु सच्चे प्यार और पवित्रता के सागर हैं। वे एक सर्वशक्तिशाली चुम्बक हैं जो अपनी असीम शक्ति से एक आत्मिक प्रेमी को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं।
सच्चा प्रेम अवर्णनीय है। इस दुर्लभ व अद्वितीय प्रेम का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। प्रभु के प्रति सच्चा प्रेम शेष सभी भावनाओं व क्रियाओं से श्रेष्ठ है।
प्रेम रस एक दुर्लभ दिव्य अमृत है और यह एक सौभाग्यशाली आत्मा का दुर्लभ विशेषाधिकार है-
दुरजन मारे वैरी संघारै
सतिगुरि मोकउ हरि नामु दिवाइआ।।1।। रहाओ।।
प्रथमे त्यागी हउमै प्रीति।।
दुतीया त्यागी लोगा रीति।।
इस सर्वश्रेष्ठ प्रेमामृत की विशेषता यह है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार मुझे छू भी नहीं सकते। मैं पूर्णतया अहं व अन्य सांसारिक रीति-रिवाजों से परे हूं। सच्चे प्रेम में लोक लाज और स्वप्रेम का कोई स्थान नहीं है।
प्रेम की पवित्रता में ‘अहं’ खत्म हो जाता है। प्रेम के आनन्द में अहं का अस्तित्व नहीं रहता।
इस प्रेम रस को चखने वाला ‘तृप्ति’ जैसे दुर्लभ गुण को पा लेता है। वह आध्यात्मिक तृप्ति व सम्पूर्णता के शिखर को छू लेता है।
ईश्वरीय प्रेम के अमृतपान से निर्मल होकर जीव काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से मुक्त परम आनंद के सागर में डूब जाता है तथा सांसारिक इच्छाओं और स्वार्थ से मुक्त एक भिन्न व पवित्र लोक में विचरण करता है।
परमात्मा प्रेम है और प्रेम ही परमात्मा है। ईश्वरीय प्रेम उतना ही पवित्र और असीम है जितना कि स्वयं परमात्मा। चूंकि संसारिकता प्रेम की पवित्रता को नष्ट करती है। अतः यह एक सच्चे भक्त को छू नहीं सकती।
परमात्मा के प्रेम में दीवाने होने वाले इंसान बहुत कम हैं। परमात्मा के प्रेम में रंगा हुआ सच्चा प्रेमी कभी भी अहं की आसक्ति और संसार के तौर तरीकों में लीन नहीं हो सकता। उसे स्वयं से लगाव नहीं होता और न ही वह लोकलाज की ही चिन्ता करता है।
तो आओ, सांसारिक प्रवृत्तियों में फंसे सभी व्यक्तियों से नाता तोड़कर, हम अपने प्यारे सतगुरु से सच्ची भक्ति के एक कणमात्रा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।