नाम - 3
हर वह श्वास जिसमें नाम की, भक्ति की और विश्वास की खुशबू होती है, एक ऐसे फूल की तरह जिसे अपने प्यारे सतगुरु के चरण-कमलों पर चढ़ाया गया हो। यह फूल अपनी ताज़गी, खुशबू और आकर्षण को त्यागता नहीं और अन्त में यह अमर नाम ही, जपने वाले को सतगुरु के पवित्र चरणों में ले जाता है।
समय और काल हर वस्तु का अन्त कर देता है किंतु दिव्य नाम में रंगे श्वासों पर यह अपना कोई अधिकार नहीं जमा सकता। श्री गुरु नानक साहिब जी के पवित्र चरणों में लीन ऐसे श्वासों के खुशबूदार फूलों तक काल की पहुँच नहीं होती। दिव्य नाम की सहायता से ही इस संसार के पाप-पंकिल समुद्र को तैर कर पार किया जा सकता है। व्यक्ति अहंकार रूपी भवरों में फंसा हुआ है। सतगुरु के पवित्र चरणों का आश्रय लेने वाला अहंकार-रहित भक्त ही केवल इस भयानक सागर को पार कर सकता है।
दिव्य नाम का आनंदमय स्वाद संसार के बाकी सभी स्वादों को समाप्त कर देता है। परमात्मा से किया गया प्रेम सांसारिक और झूठे बंधनों की आसक्ति को मिटा देता है। दिव्य भूख और प्यास, सांसारिक भूख और प्यास को समाप्त कर देती है। सच्चे प्रेमी सिर्फ ईश्वरीय नाम का जाप करते है और निरन्तर ‘सिमरन’ से उनका हर काम परमात्मा की सेवा का हिस्सा बन जाता है।
परमात्मा का दिव्य नाम सच्ची तृप्ति प्रदान करता है और दुनियावी तड़प व लालसा से मुक्ति दिलाता है। यह सब कुछ दिव्य नाम से प्राप्त होता है। क्योंकि यह सारी सृष्टि नाम के सहारे पर खड़ी है, इसलिए मैंने इस पवित्र नाम की शरण ले ली है। मेरा मात्रा सहारा वह दिव्य नाम ही है। मन को नाम में टिकाए रखने से हमारा एक भी श्वास व्यर्थ नहीं जाता। सतगुरु की कृपा और सच्ची प्रक्रिया से, बिना किसी बाधा के नामलीनता अपने-आप बढ़त्ी जाती है। सांसारिक झमेलों में उलझे रहने के बावजूद नामलीनता चलती रहती है।
नाम मेरा रक्षक है, सूझ-बूझ देने और संभालने वाला है। नामी की ओर जाने वाले दैवी रास्ते पर मुझे प्रकाश दिखाने वाला है।
दिव्य नाम पर निर्भर करते हुए और ध्यान लगाते हुए व्यक्ति अपने नाम की पहचान भूल जाता है तथा परमात्मा के प्रकाशमय रूप की भक्ति करते हुए अपनी शारीरिक चेतना को भुला देता है।
दिव्य नाम और रूप से सच्चा संबंध आखिरकार आपको अपने नाम, मन और शरीर से अलग कर देता है।
सच्चा प्यार हृदय में बसता है। प्यार के शक्तिशाली प्रवाह से सच्ची प्रार्थना प्रिय परमात्मा के पवित्र चरणों तक पहुँचती है। प्यार के इस तेज़ बहाव के साथ मनुष्य पूरी तरह बहता है और दैवी रूप में समा जाता है।
मन तन नामहि नामि समाने।।
जहाँ नाम नहीं है वहाँ कौन-सी चीज है?
नाम किसी पदार्थ के बदले नहीं मिलता है।
यह सिर्फ सिर का सौदा है।