जीवण की छडि आस। होहु सभना की रेणुका तउ आउ हमारै पास।।
होहु सभना की रेणुका तउ आउ हमारै पास।।
एक बार मैंने उपर्युक्त संदर्भ में अपने पूज्य पिता जी से जिज्ञासावश पूछा कि मानवीय तौर पर सारी सृष्टि की धूलि बनना तो असम्भव है।
उन्होंने फ़रमाया कि जब किसी वृक्ष की जड़ को पानी दिया जाता है तो उसके सभी पत्तों और टहनियों को अपने आप पानी मिल जाता है।
यदि कोई सतगुरु के चरणों-कमलों की धूलि बन जाता है, वह अपने-आप ही पूरी सृष्टि की धूलि बन जाता है। सतगुरु अमर हैं और समूचे ब्रह्माण्ड में निवास करते हैं। उन्होंने अपने इष्ट की पूजा भी इसी प्रकार की और पूर्ण रूप से बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरण-कमलों की धूलि बन गए। वरना जीवन में कुछ लोगों को ही प्रसन्न कर पाना कठिन होता है।
बाबा नरिन्दर सिंह जी ने आगे इस तरह समझाते हुए फरमाया- सतगुरु अविनाशी पुरुष हैं और सभी में समाए हुए हैं। जब सतगुरु के चरणों की धूलि बन जाने से ही व्यक्ति अपने आप सारी सृष्टि के चरणों की धूलि बन जाता है।
यह सारी सृष्टि ही ब्रह्मज्ञानी का आकार है, जब ब्रह्म ज्ञानी के चरणों की धूलि बन गए तो इस सारी सृष्टि के चरणों की भी धूलि बन गए।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी स्वयं ही सभी आत्माओं की आत्मा हैं और सभी नेत्रों की ज्योति हैं। भाई कन्हैया जी और भाई नंदलाल जी श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी के चरणों की धूलि बन चुके थे इसलिए ही तो उन्हें सब में उनके ही दर्शन होते थे। इस तरह वे सभी के चरणों की भी धूलि बन चुके थे।