‘मैं’ हटा दो, सारी सृष्टि प्रभु का रूप दिखाई देगी
‘मैं’ हटा दो, सारी सृष्टि प्रभु का रूप दिखाई देगी
‘मैं’ रूपी अशुद्ध अहंकार को त्याग कर ही हम सारे ब्रह्माण्ड में परमात्मा के पवित्र बिम्ब के दर्शन कर सकते हैं। ‘अहं’ दीर्घ रोग है, सर्वाधिक घातक बीमारी है। यह सब से बड़ी अशुद्धता है। एक निर्मल हृदय ही ब्रह्माण्ड में व्याप्त पवित्रता के दर्शन कर सकता है। जबकि अहं का अस्तित्व ही दोगलेपन और भ्रम का कारण है। अहं का पर्दा हटते ही सम्पूर्ण विश्व दिव्य नजर आने लगता है और सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त सत्य का ज्ञान होता है। इसी सूत्रा को ग्रहण करने पर ही भाई नंद लाल जी व भाई कन्हैया जी को सबमें गुरु गोविन्द सिंह जी के दर्शन होते थे और भाई नाम देव जी को गोविन्द के।
माया और अहं का परदा हटा कर अपने सच्चे व्यक्तित्व को पहचानो।
बाबा नरिन्दर सिंह जी ने आगे फ़रमाया-
1. ‘अहं’ ही नर्क है और व्यक्ति इस ‘अहं’ के नरक को ही भोग रहा है।
2. ‘अहं’ ही भवसागर है और इस ‘अहं’ के भवसागर में डूबकर ही मनुष्य जन्म-मरण ‑के चक्र में पड़ा रहता है।
3. ‘अहं’ ही पाप है, बाकी सब कुछ पुण्य है।
4. ‘अहं’ ही झूठ है, बाकी सब कुछ सत्य है। अपनी ‘मैं’ को हटा दो, सब कुछ ‘तू’ ही नज़र आएगा।
5. जीवन-यात्रा ‘मैं’ से शुरु होती है, यदि ‘तू’ पर खत्म हो जाए तो सफल है।
2. ‘अहं’ ही भवसागर है और इस ‘अहं’ के भवसागर में डूबकर ही मनुष्य जन्म-मरण ‑के चक्र में पड़ा रहता है।
3. ‘अहं’ ही पाप है, बाकी सब कुछ पुण्य है।
4. ‘अहं’ ही झूठ है, बाकी सब कुछ सत्य है। अपनी ‘मैं’ को हटा दो, सब कुछ ‘तू’ ही नज़र आएगा।
5. जीवन-यात्रा ‘मैं’ से शुरु होती है, यदि ‘तू’ पर खत्म हो जाए तो सफल है।
शरीर में कैद आत्मा केवल तभी मुक्त होती है जब वह स्वयं-प्रसारित दूरियों तथा ‘मैं’ और ‘अहं’ की यात्रा को समेट कर अन्तिम लक्ष्य ‘तू’ तक पहुँच जाती है।