प्रभु का सच्चा प्रेमी
सच्चा संत, प्रभु का सच्चा प्रेमी सम्पूर्ण सृष्टि तथा सम्पूर्ण मानवता की मुक्ति कर सकता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी सागर की तरह हैं और पूर्ण संत एक बादल की तरह है। संत प्रेम के सागर से प्रेम व दया का अमृत अपने में भरते हैं तथा सम्पूर्ण मानवता पर इस की पवित्र वर्षा करते हैं। एक सच्चा व पूर्ण संत प्रभु के समान हो जाता है। सतगुरु जी निरंतर का ही एक आकार हैं। इस आकार रहित प्रभु ने ही दैवी सतगुरु का रूप धारण किया हुआ है।
प्रभु का प्रेमी मनुष्य के हृदयों को प्रेम से पवित्र करता है। उस के हृदय में इतनी शक्ति व सामथ्र्य है कि वह सभी सजीव व निर्जीव वस्तुओं को पापों से मुक्त कर सकता है। जिस स्थान पर भी वह पाँव रखता है, वह स्थान पवित्र हो जाता है। प्रभु की प्रेमाभक्ति जंगल की पावक ‘पवित्र करने वाली’ आग की तरह दूर-दूर पैफल जाती है। उस के रोम-रोम में से नाम व प्रेम की चुम्बकीय लहरें निकलती हैं।
तो अन्तरात्मा को इस का लाभ प्राप्त होता है,
जब अन्तरात्मा से पवित्र नाम का जाप
होता है तो संसार को लाभ होता है।
प्रभु के सच्चे-प्रेमी को जीवन से मृत्यु अधिक प्रिय लगती है। उसके लिए यह प्रभु का उपहार कृपा का एक रूप व आशीर्वाद होता है। वह अत्यधिक व असह्य दुःखों में भी अपने आप को बहुत ही उन्मादित अनुभव करता है।
प्रभु के सच्चे भक्त को लोक-परलोक के राज्य से, सांसारिक धन-दौलत की शान से, तथा प्रिय मित्राजनों से, उसके अनन्त प्रेम के ड्डोत सतगुरु जी बहुत ही अधिक प्रिय है।