शरीर में दिव्य प्रकाश का प्रसार
जिस प्रकार बल्ब के अंदर का प्रकाश कांच की सीमाओं को लांघ कर अपने आस-पास चारों ओर रोशनी फैलाता है उसी प्रकार एक पूर्ण संत का शरीर ईश्वरीय प्रकाश, दिव्य प्रेम ओर परम आनन्द से अपने आस-पास के वातावरण को पवित्रता से सराबोर कर देता है।
महान अवतार के समूचे शरीर से इस प्रकाश, आनंद और अमृत की धारायें प्रवाहित होती रहती हैं, यह अमृत और प्रकाश उनके नेत्रों, चरणों, शरीर, उनके स्पर्श के माध्यम से प्रवाहित होता रहता है। उनके पवित्र चरण-स्पर्श से धरती और धूल भी पवित्र हो उठती है। उनके हर कर्म से, ब्रह्माण्ड में प्रेम और प्रकाश फैलता है। उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व अपने चारों ओर दिव्य प्रकाश को फैलाता है। ऐसे दिव्य पुरुष से निकले प्रेम और प्रकाश के सैलाब की शक्ति ही बड़े-बड़े पापियों को पाप से मुक्त करती है, अज्ञानता का नाश करती है और पीड़ित मानवता को सभी रोगों व संताप से मुक्त कर देती है।