बाल्य-काल

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बाल्य-काल में इस पवित्र बालक को कभी किसी ने रोते या हँसते नहीं देखा। कभी वह दूध के लिए नहीं रोया, न उसने कुछ खाने को माँगा। वे भूख व प्यास की मानवीय कमजोरियों से ऊपर उठे हुए थे। गर्मी या सर्दी से भी वे प्रारम्भ से ही निःस्पृह थे। प्रसन्नता या क्रोध से पूर्ण रूप से मुक्त थे। उन की कोई आकांक्षा नहीं थी तथा वे सांसारिक आकर्षणों से एकदम परे थे। वह सदा गहन समाधि में लीन रहते तथा उन का मुखमण्डल सूर्य की किरणों की तरह चमकता रहता था। वह सदैव प्रभु-प्रेम के परम आनंद की स्थिति में रहते थे। उनवेफ मुख-मण्डल से आभा की अनोखी किरणें पफूटती थीं। एक बार अपनी युवावस्था में जब वे अँधेरे कमरे में समाधि लगाए थे, उनकी आभा से सारा कमरा आलोकित हो उठा। भूख या प्यास, दुःख या सुख, गर्मी या सर्दी से वे अप्रभावित थे। वे बाल्यकाल में ही इन सभी पर विजय प्राप्त कर चुवेफ थे। वे कभी भी क्रोध नहीं करते थे। सभी परिस्थितियों में उन का हृदय शान्त रहता था। उनवेफ आभा-मण्डित चेहरे से उस शाश्वत आनंद का प्रकाश और सुगंध बिखरती थी, जिसमें वे सदा मग्न रहते थे। उनवेफ जीवन की दो घटनाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन से इस दिव्य शिशु में विद्यमान प्रभु-शक्ति के तप-तेज का ज्ञान होता है।

एक बार कोई महात्मा उनवेफ घर के आगे से गुज़रे। उन्होंने इस बालक को चारपाई पर बैठे देखा। बाबा जी के चेहरे को ईश्वरीय तेज से आलोकित पा कर वह आश्चर्यचकित रह गये। वे महात्मा घर के अन्दर प्रविष्ट हो इस दिव्य शिशु के पवित्र चरणों की ओर नीचे बैठ गए।

एक बार उदासी सम्प्रदाय के एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ गाँव के बाहर पड़ाव डाले हुए थे। सायंकाल के समय गाँव के सारे लोग उनकी संगत में प्रवचन सुनने आया करते थे। एक बार इस पवित्र बालक के भाग्यशाली पिता इस बालक को गोदी में लिए उस महात्मा जी के सत्संग में चले गए तथा उनवेफ समीप ही बैठ गए। ज्यों ही उन महात्मा जी की नज़र इस बालक पर पड़ी तो वह अचम्भित रह गए। बालक के मुख से निगाह नहीं उठा सवेफ। इन दोनों घटनाओं में दोनों महात्मा पवित्र बालक के दीप्त चेहरे से मंत्रा-कीलित हो गए थे। उन्होंने बहुत श्र(ा से तथा आदर के साथ उस दुर्लभ दैवी ज्योति के विषय में कुछ कहा, जिसको उन्होंने अपने जीवन में पहली बार देखा था। उनवेफ वचन कुछ ऐसे थे-

हमारे धन्य भाग्य हैं, कि हमने इस पवित्र बालक के रूप में प्रभु के दर्शन किये हैं। वे माँ-बाप धन्य हैं, जिनवेफ घर में इस पवित्र बालक ने जन्म लिया है। वह गाँव धन्य हैं, वह नगर धन्य है तथा यह सारी पृथ्वी बड़ी भाग्यशाली है, जहाँ पर प्रभु की यह मूर्ति जाएगी और निवास करेगी।

दोनों महात्माओं ने इस बालक के मुख-मण्डल पर इलाही ज्योति के दर्शन किये थे। उगते हुए सूर्य की दीप्ति वाले इस मुख पर ईश्वरीय आभा और शक्ति का तेज देख कर उन्होंने इस शाश्वत प्रकाश को अपनी श्र(ा समर्पित की और हृदय से उसवेफ माता-पिता को बधाई दी।