मृत का पुनर्जीवित होना
एक बार की बात है कि भुच्चों गाँव का एक निवासी परदेश गया हुआ था। जब वह गाँव वापस आया तो मालूम हुआ कि उसकी पत्नी स्वर्गवासी हो चुकी है। सम्बन्धियों व गाँववासियों ने उस की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी का अन्तिम संस्कार कर दिया था। उसने बाबा जी के आसन वाले स्थान की सेवा आरम्भ कर दी। इस प्रकार कुछ माह बीत गए। एक बार बाबा जी ने कहा कि कुछ माँगना है तो माँग लो। उस व्यक्ति ने बाबा जी से रोते हुए प्रार्थना की कि मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है। मुझे घर में वह सोना व धन नहीं मिल रहा है, जो उसवेफ पास होता था क्योंकि पत्नी की मृत्यु के समय वह गाँव से बाहर था।
दयालु बाबा जी ने रात्रि के समय उसे एक विशेष स्थान पर जाने के लिए कहा और बताया कि वहाँ तेरी पत्नी तेरी प्रतीक्षा कर रही होगी। उससे स्वयं ही सब कुछ पूछ लेना। उस व्यक्ति ने इसी प्रकार किया। वह यह देख कर चकित रह गया कि वहाँ पर उसकी पत्नी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। पूछने पर उसने घर में वह स्थान बता दिया, जहाँ बीमार होने के समय उसने धन व सोना दबा दिया था।
बाबा हरनाम सिंह जी जैसे महापुरुष उस मृत व्यक्ति को पुनः बुलाने की शक्ति रखते थे, जिस का अन्तिम संस्कार हो चुका था। कुछ अनभिज्ञ व अविश्वासी व्यक्ति उस महापुरुष के सामथ्र्य पर सन्देह क्यों करते हैं, जो कि उसी गुरुनानक जी का ही ज्योति-रूप थे? वे श्र(ालुओं की मनोकामनाएँ पूरी करने, सच्चे साधुओं को उस प्रभु की पवित्र हजूरी के दर्शन तथा आशीर्वाद देने और अपने सेवकों का ‘तिल-पफुल’ स्वीकार करने के लिए मनुष्य रूप में इस पृथ्वी को भाग्यशाली बनाने आए थे। ज्ञानहीन तथा भाग्यहीन व्यक्ति निरंकार स्वरूप श्री गुरुनानक साहिब जी के सामथ्र्य पर भी सन्देह करते हैं कि वह प्रत्यक्ष रूप में प्रकट हो कर अपने प्रिय सेवकों की प्रेम-भावना का भोग ग्रहण करते होंगे।
ये लोग पवित्र वाणी व भाई गुरुदास जी की वारों में पढ़ते हैं कि किस प्रकार भगत नामदेव व भगत धन्ना जी की प्रार्थनाएँ स्वीकार करवेफ प्रभु ने प्रत्यक्ष रूप में दर्शन दिए थे। पर यह उन की बदकिस्मती है कि वह अपने सब से बड़े सत्गुरु गुरुनानक देव जी के इस प्रकार रूप धारण करने के सामथ्र्य पर सन्देह करते हैं। अव्यक्त ईश्वर व्यक्त जगत् में श्री गुरुनानक साहिब के रूप में प्रकट हुए।
अपनी दिव्य लीलाएँ कर के व्यक्त पिफर अव्यक्त मे लीन हो जाता है। इस का यह आशय नहीं है कि अपने सच्चे प्रिय श्र(ालुओं व सेवकों के लिए किसी भी समय-स्थान पर तथा उसी दैवी स्वरूप में प्रकट होने की अव्यक्त प्रभु की शक्ति व सामथ्र्य में कोई कमी आ जाती है।