बाबा नंद सिंह जी महाराज के 13 संकल्प
- किसी से कोई चीज़ नहीं माँगनी।
- पैसे को हाथ नहीं लगाना।
- नगर में नहीं रहना।
- किसी के चिट्ठी-पत्रा भेजने पर नहीं जाना।
- किसी आयोजन में शामिल नहीं होना।
- किसी धर्मस्थान से ‘सरोपा’ (सम्मान) नहीं लेना।
- अपने नाम कोई जागीर नहीं करनी।
- हस्ताक्षर नहीं करने।
- अकेली स्त्रा को दर्शन नहीं देने।
- किसी के घर अखण्ड-पाठ पर नहीं जाना।
- संगत में रागियों और संगत स्थान की सतह से नीचे खड्डा खोद कर बैठना।
- किसी दीवान या सम्मेलन में नहीं जाना।
- श्री गुरुनानक पातशाह के अतिरिक्त किसी और दूसरे की स्तुति नहीं करनी।
महाभयानक कलियुग में सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए बनाए गए ये दृढ़ नियम, आध्यात्मिक क्षेत्रा के एक महान योद्धा द्वारा निर्धारित व निश्चित किए गए थे।
ये दृढ़ नियम सांसारिकता के किसी भी रूप के सम्पूर्ण त्याग पर बल देते हैं। यह महायोद्धा कामिनी और कंचन, नाम, बड़प्पन, प्रचार, दलबन्दी और राजनीतिक छल-बल से पूर्णतया मुक्त थे। भौतिक इच्छाएँ और संसार की कोई भी वस्तु उन्हें आकर्षित नहीं कर सकती थी। ये मायावी पदार्थ तो उनके पावन स्थान के निकट भी नहीं पहुँच सकते थे। शारीरिक रूप से तो क्या, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी उनकी पहुँच उनके पवित्र स्थानों के बाहर ही खत्म हो जाती थी। बाबा नंद सिंह जी महाराज के ‘सच्च खंड’ की परिधि में माया के किसी भी रूप की पहुँच किसी भी रूप में असम्भव थी।
ऐसे अद्भुत और अनुपम त्याग के बावजूद वे हमेशा साधसंगत के पैरों की सतह से भी निम्न स्थान पर बैठते थे। वे मन और आत्मा को रोमांचित कर देने वाली निरभिमानता, नम्रता और दीनता के प्रत्यक्ष स्वरूप थे। उनकी दृष्टि में इन नियमों के विपरीत उठाया गया कोई भी कदम श्री गुरु नानक देव जी (श्री गुरु ग्रन्थ साहिब) के प्रति प्रेम की शुद्धतम अवस्था में घोर मिलावट है।
परमात्मा से पूर्ण रूप से जुड़ना तभी सम्भव है यदि मनुष्य अपने व्यक्तिगत प्रचार-प्रसार, प्रसिद्ध, धन संचय, स्कूल व अस्पताल चलाने, डेरा व इमारतें बनाने आदि जैसे सांसारिक कर्मों से परहेज करें। सच्चे प्रेम में ये तुच्छ मिलावटें उस प्रेमी के लिए बहुत भारी हानि हैं। भक्ति क्या और उसका दिखावा क्या तथा माथा टेकने की भूख क्या?