अरदास
‘अरदास’ इस शुद्ध मर्यादा की कुंजी है तथा जीवन-शक्ति है। इस अरदास में कभी भी भौतिक समृद्धि के लिए प्रार्थनाएँ नहीं की जातीं, इस अरदास में श्री गुरु नानक साहिब जी की स्तुति व प्रेमाभक्ति की प्रशंसा ही प्रमुख होती है। बाबा नंद सिंह जी महाराज ने अरदास में कभी किसी का नाम नहीं लिया था। न ही दुनियादारी की कोई बात की थी। मात्रा गुरु नानक साहिब के विशेष नूर की प्राप्ति हेतु प्रार्थनाएँ ही की जाती थी। पवित्रता के इस महासागर में माया या भौतिक वस्तुओं का विचार भी समीप नहीं आता था।
सम्पूर्ण मर्यादा निष्काम है। इस सम्पूर्ण व शुद्ध मर्यादा के प्रत्येक पहलू से सच्ची श्रद्धा के दर्शन होते हैं। प्रत्येक कार्य में निष्कामता इसका लक्षण है:
देहि नामु संतोखीआ उतरै मन की भुख॥
तिस कउ होत परातति सुआमी॥
निष्कामता व सच्ची सेवा के द्वारा प्रभु की प्राप्ति होती है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सेवा, आदर, प्रेम व पूजा पूर्णतः निष्काम होकर सच्ची भावना से की जाती थी।
पूर्णतः निस्वार्थ व सांसारिक लालच से रहित वातावरण में अमृत नाम का अनुभव होना एक पवित्र वास्तविकता थी।
निष्काम सेवा, निष्काम नाम-सिमरन, निष्काम कीर्तन, निष्काम अखण्ड पाठ, निष्काम सम्पुट अखण्ड पाठ तथा निष्काम अरदास इस सारी मर्यादा का सार था। सब कुछ शुद्ध तथा निर्मल था। इस शुद्ध मर्यादा में स्वार्थ तथा सांसारिकता का तिनका मात्रा भी नहीं था। यह बाबा नंद सिंह जी महाराज द्वारा धरती पर लाया गया ईश्वरीय उपहार था।
इस उत्ते झूठ नहीं तुर सकदा।
यह सत्य का मार्ग है, झूठ इस मार्ग पर नहीं चल सकता।
यह पवित्रता का मार्ग है, अपवित्रता इसके समीप नहीं आ सकती।
इस मर्यादा में सम्पूर्ण पवित्रता झलकती है। सांसारिकता इसको मिथ्या सिद्ध नहीं कर सकती।