गुरु की मूर्ति मन में ध्यान
(गुर की मूरति मन महि धिआनु)
श्री गुरु नानक साहिब के सच्चे श्रद्धालुओं के लिए उन के दर्शन होना नेत्रों के लिए सब से बड़ी प्रसन्नता व उन की आत्माओं के लिए रूहानी आनंद वाली बात है। वे अपनी आत्मा की आत्मा श्री गुरु नानक साहिब जी के दर्शन किए बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते।
प्रिय गुरु नानक साहिब अपने सेवकों को इन्द्रियों से मिलने वाले भौतिक पदार्थों के झूठे आनंद से छुटकारा दिलाते हैं। मोह से निवृत्ति करवाते हंै। श्री गुरु नानक साहिब जी के ज्योति स्वरूप, दर्शन करने से अन्तिम सत्य का ज्ञान होता है। इससे सांसारिक व अस्थायी बंधनों के धागे सरलता से ही टूट जाते हैं। श्री गुरु नानक साहिब जी के दर्शनों के आशीर्वाद से ऐसे सेवक अपने-अपने हृदयों में उनकी मूर्ति स्थापित कर लेते हैं। वे अपने प्रभु-परमेश्वर के चरण-कमलों के आश्रय में आ जाते हैं। वे गुरु नानक साहिब जी के चरण-कमलों का आश्रय नहीं छोड़ते तथा गुरु नानक साहिब अपने प्रिय सेवकों को नहीं भुलाते हैं।
श्री गुरु नानक साहिब दिव्यता की मूर्ति हैं। वह परम सत्य तथा महान् आध्यात्मिक दर्शन की प्रतिमूर्ति हैं। सच्चे सेवक ही उनके अद्भुत रूप के दिव्य गुणों को पहचानते हैं। सतगुरु जी का निरन्तर सिमरन करने से हृदय पवित्र हो जाता है तथा अभ्यासी व जिज्ञासु व्यक्तियों के चेहरों पर प्रभु की आभा झलकने लगती है।
श्री गुरु नानक साहिब जी महान् व दिव्य गुणों की खान हैं। वे सभी रूहानी सद्गुणों व महिमाओं के भण्डार हैं। हम उन से अपने दैनिक जीवन के लिए प्रेरणा व मार्ग रोशन करने वाला प्रकाश प्राप्त करते हैं। उन दैवी सद्गुणों तथा विशेषताओं द्वारा हमारा जीवन रूहानियत से भरपूर व अध्यात्ममय बन जाता है। श्री गुरु नानक देव जी इस पृथ्वी पर परम आदर्श हैं- वह आदर्श, जिस का सिमरन करने से हमारा कायाकल्प हो जाता है। श्रद्धालु जन प्रेम के सर्वोच्च पैगम्बर श्री गुरु नानक साहिब जी की इस रूहानी सूरत का ध्यान रख कर सिमरन करते हैं।
श्रद्धालु जन श्री गुरु नानक साहिब के चरणकमलों व तेजस्वी रूप से बहती अमृतधारा को अपनी शारीरिक, मानसिक व आत्मिक दृष्टि द्वारा अपनी आध्यात्मिक प्यास व भूख को मिटाते हैं।
वे श्वास, वे क्षण, वे काल भाग्यशाली हैं, जिनमें हम कृपा के सागर तथा इस विश्व के मंगल करने वाले श्री गुरु नानक साहिब जी का सिमरन करते हैं।
पूरन करमु होइ प्रभ मेरा॥
मैं अपने गुरु के दर्शनों से जीवित रहता हूँ, यही मेरी इच्छा है, इससे मेरे जीवन के कर्म सार्थक होते हैं।
निर्गुण प्रभु हमारी भौतिक व बौद्धिक दृष्टि से नहीं आते। परन्तु एक सच्चे सेवक को श्री गुरु नानक साहिब के तेजस्वी दर्शन होना एक बहुत बड़ी कृपा है।
श्री गुरु नानक साहिब स्वयं निर्गुण प्रभु है। वे ज्योति रूप व प्रभु की प्रत्यक्ष एवं पूर्ण मूर्ति हैं।
उन का निरंकारी ज्योतिस्वरूप सभी रूहानी विशेषताओं व सद्गुणों से भरपूर है। श्री गुरु नानक साहिब इस ब्रह्मांड के स्वामी हैं। उन का निरंकारी ज्योतिस्वरूप समस्त कृपा व दया का सरोवर है। श्री गुरु नानक का ज्योतिस्वरूप शाश्वत है तथा शाश्वत रहेगा। उन की तेजस्वी ज्योति युग-युगांतरों तक मानवता का मार्ग प्रकाशमय करती रहेगी।
ओहु अबिनासी पुरखु है सभ महि रहिआ समाइ॥
सतगुरु जी जन्म व मृत्यु के चक्रों से बाहर हैं। वे काल व कर्मों की सीमा में नहीं आते।
श्री गुरु नानक देव जी का इस विश्व में देह रूप में प्रकट होना व दुनिया से चले जाना अलौकिक सत्ता की योजना का अंग है, और मरणशील प्राणियों के लिए अबूझी प्रक्रिया है। मनुष्य की साधारण बुद्धि इसे नहीं समझ पाती।
श्री गुरु नानक देव जी के सच्चे प्रेमी का ध्यान उनकी प्रेम आराधना की ओर ही होता है। भाई कन्हैया जी श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी को इतनी निष्ठा से प्रेम करते थे कि उनको मित्रों व शत्रुओं, सब में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के दर्शन होते थे। श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के सच्चे सेवक भाई नंदलाल जी गुरु जी को सारी सृष्टि में देखते थे,
नूर दर हर चश्म गुरु गोबिंद सिंह॥
गुरु गोबिन्द सिंह जी प्रत्येक शरीर की आत्मा हैं, गुरु गोबिन्द सिंह जी हर एक के नेत्रा की ज्योति हैं।
भाई मतिदास जी ने अपने अंतिम श्वास तक, सतगुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी। श्री गुरु नानक देव जी का सच्चा सेवक जीवन भर गुरु जी के प्रकाशयुक्त रूप के दर्शन करते रहना चाहता है। श्री गुरु नानक देव जी की अलौकिक ज्योति ऐसे भक्तों व जिज्ञासुओं के मानसिक व आत्मिक मण्डल से झलकती है व दैवी विश्वास देती रहती है। उनके हृदयों में प्रभु का निवास रहता है तथा वे सदैव आत्मिक प्रसन्नता की अवस्था में रहते हैं।
नेत्री सतिगुरु पेखणा ड्डवणी सुनना गुर नाउ॥
गुरु जी का सिमरन करना, जिह्ना द्वारा गुरु के नाम का जाप करना, नेत्रों द्वारा गुरु जी के दर्शन करना तथा गुरु जी के प्रेम में तन, मन, धन, अर्पण करने से सचखण्ड में मान सत्कार प्राप्त होता है। इसलिए गुरसिख अपनी ज्ञानेन्द्रियों तथा वाहेगुुरू से प्राप्त सभी शक्तियों का सम्पूर्ण प्रयोग प्रभु प्राप्ति के लिए ही करते हैं। गुरु जी की पवित्र वाणी तथा गुरु के साथ अभेद होने की गुरु-पूजा भीतरी व बाह्य शक्तियों के पूर्ण मिलन द्वारा हो जाती है। आत्मा, मन तथा शरीर पूर्णतः सतगुरु जी के प्रेम व पूजा-अर्चना में लग जाते हैं। उसके शरीर का प्रत्येक अंग तथा उस की शक्ति का प्रयोग सतगुरु जी की सेवा व अर्चना में होता है। यह प्रेम-मग्न सिख के मन व तन की निराली अवस्था है।
जब तक गुरु-चेतना में तेरा नहीं जाता, जब तक हृदय गुरु-चेतना द्वारा भरपूर नहीं हो जाता, जब तक सिख का प्रेम व उस का अपना व्यक्तित्त्व पूर्ण रूप से सतगुरु जी के चरण-कमलों में लीन नहीं हो जाता, तब तक वह वाणी की मूल पवित्रता व रहस्य को समझने का दावा नहीं कर सकता।
सभी भीतरी, बाह्य, शारीरिक, मानसिक व आत्मिक शक्तियाँ निरन्तर चेतना की प्राप्ति की ओर लगा देनी चाहिए। इस परम पद की प्राप्ति हेतु बाह्य व भीतरी पूजा के संगम की आवश्यकता है।
इस महान् वाणी की मूल प्रवृत्ति तथा विषय- निरन्तर रूहानी रंग में रहना है। सचखण्ड में गुरु के चरण-कमलों पर आदरणीय स्थान प्राप्त करने हेतु निरंतर गुरु-चेतना की कमाई करने की मुख्य आवश्यकता है। गुरु-चेतना में रहने की अवस्था बहुत ऊँची होती है। यह आत्मिक अवस्था सदैव बनी रहती है तथा गुरु जी की कृपा से इस में कभी विघ्न नहीं पड़ता। इस अवस्था में आत्म-समर्पण व प्रेम-भक्ति सम्पूर्ण हो जाती है तथा सिख सतगुरु जी के आश्रय में रहता है।
सिख प्रेम व सेवा द्वारा अपना तन व आत्मा गुरु को अर्पित कर चुका होता है। इस के तन-मन में गुरु का निवास हो जाता है। उसके शरीर का रोम-रोम जाप करता है। इस प्रकार सच्चे सिख के सभी कार्यों में सतगुरु जी के दर्शन होते हैं।
सच्चा सिख अपनी अमूल्य इन्द्रियों नेत्रा, कान व रसना द्वारा अपने सतगुरु के प्रेम के अमृत का स्वाद लगातार चखने की कामना करता है। उस की ज्ञानेन्द्रियाँ मनुष्य रूप देने वाले प्रभु के लिए कृतज्ञ रहती हैं। वे नेत्रा पवित्र हैं व धन्य हैं जो गुरु नानक जी के दर्शन करने पर भी अतृप्त ही रहते हैं। उनकी दर्शनों की प्यास बनी रहती है। वे कान धन्य हैं जो हरिजस सुनने से नहीं थकते। वह जिह्ना धन्य है जो गुरुवाणी पढ़ने से नहीं थकती।