निरंकार दृष्टि, निरंकार भावना
बाबा नंद सिंह जी की महिमा अल्पावधि तक सीमित नहीं थी, उनके भौतिक जीवन-काल तक ही मानवता की मुक्ति का उनका कार्य सीमित नहीं था। उनकी महिमा सर्वव्यापी तथा देश व काल से परे है। उन्होंने उस पवित्र मर्यादा एवं अलौकिक साधना व परम्परा के संकल्प का प्रचलन किया, जिसके द्वारा भविष्य में आने वाली पीढ़ियों का लोक-परलोक सुधारा जा सके। एक बार उन्होंने रूहानी मनोदशा में कहा था:
बाबा नंद सिंह जी महाराज की विशेष आभा सम्पूर्ण संसार को प्रकाशमय करेगी।
हम सभी अपने शरीर व नाम से पहचाने जाते हैं। श्री गुरु नानक साहिब के सभी उत्तराधिकारी गुरु नानक साहिब के पवित्र नाम से ही जाने जाते हैं। श्री गुरु नानक देव जी गुरु ग्रंथ साहिब से तदाकार हो गए थे। यह उनकी अपार कृपा हम पर है कि हम अपनी ज्ञान-इन्द्रियों द्वारा उन के साथ बातचीत कर सकते हैं, उनके वचन सुन सकते हैं, उनकी सेवा कर सकते हैं। यह और भी कृपा की बात है कि उन्होंने अपनी रूहानी शान की पहचान करने हेतु अपने इस दैवी रूप का सृजन किया तथा भाग्यशाली व्यक्तियों को इसके चरणों से जोड़ा है। श्री गुरु नानक साहिब ने इसमें अपनी विचारधारा को प्रकट ही नहीं किया बल्कि स्वयं श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अनन्तकाल से निवास कर रहे हैं।
भक्त नामदेव जी की साधारण बच्चों जैसे सच्ची गहरी भावना ने पत्थर को प्रभु-रूप में बदल लिया था तथा प्रभु को उसके द्वारा अर्पित दूध पीना ही पड़ा था। भक्त धन्ना जी की प्रार्थनाओं, पुकारों, तदुपरांत मरणव्रत ने प्रभु को पत्थर में से प्रकट होकर भोजन के लिए मजबूर कर दिया था। उनकी पत्थर-दृष्टि या पत्थर-भावना नहीं थी। उन की भगवान-दृष्टि तथा प्रभु-भावना थी, जिसने पत्थर से प्रभु को प्रकट कर लिया था।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की ओर संकेत करते हुए बाबा जी कहते थे:
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी जीवित व जाग्रत श्री गुरु नानक हैं, जो बातचीत भी करते हैं। श्री गुरु नानक साहिब का सच्चा प्रेमी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को पुस्तक-दृष्टि या पुस्तक-भावना से नहीं देखता। वह मन की योग-साधना, गुरु-दृष्टि की चाह तथा निरंकारी भावना द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को प्रत्यक्ष परमेश्वर जान कर पूजा करता है।