बाबा जी का होती मर्दान जाना
एक बार बाबा जी होती मर्दान गए हुए थे। यहाँ पर प्रसिद्ध संत बाबा कर्म सिंह जी रहते थे। ग्रीष्म कृतु थी। बहुत से सेवक पहाड़ी के बड़े सूखे नाले में आराम किया करते थे। जब कभी ऊपर पहाड़ों में वर्षा होती तो इस नाले में बाढ़ आ जाती थी। बाबा जी युवा अवस्था में थे। वे अकेले थे। उन्होंने इस नाले का एक निर्जन स्थान चुना और रोज़ की तरह वहाँ रात को तपस्या में लीन हो गए।
एक रात्रि की बात है कि ऊपर पहाड़ों में बहुत वर्षा हुई जिस के कारण नाले में बाढ़ आ गई। बाढ़ से नाला उफन पड़ता था। पहाड़ों से नीचे की ओर बहते पानी का बहाव बहुत तीव्र हो गया था तथा वह भयानक शोर उत्पन्न कर रहा था। यह भयानक आवाज़ सुन कर सभी सेवक नाले से बाहर भाग आए। उन्होंने देखा कि प्रभु का यह एक नया प्रियजन अभी भी वहीं है। ऐसा न हो कि बाढ़ का पानी उसे बहा कर ले जाए। उन्होंने बाबा जी को बाहर आने के लिए आवाज़ लगाई पर बाबा जी तो गहरी समाधि में लीन थे। तब तक तो बाढ़ का पानी सभी ओर से ऊपर आ गया था। पानी का तल लगभग छः फुट तक चढ़ आया था। सेवक यह देख कर आश्चर्यचकित रह गए कि पानी बाबा जी के चारों तरफ घेरा बनाए हुए था परन्तु यह उनके शरीर को स्पर्श नहीं कर रहा था। जितने समय बाबा जी समाधि में लीन रहे, पानी उसी तरह तीव्र गति से उफनता रहा। पानी बाबा जी को घेरे हुए था पर बाबा जी के सत्कार (आदर) में उन से गज भर दूर रहा। कुछ समय उपरान्त बाबा जी ने अपनी समाधि खोली तथा किनारे की ओर चल पड़े। तीव्र वेग से चलते पानी ने उनको रास्ता दे दिया। पानी बिल्कुल उनके चरणों तक रह गया। शक्तिशाली दरिया का पानी इस प्रभु को राह देने के लिए आगे से हटता जाता और पीछे मिलता जाता था। यह स्पष्ट दिखाई देता था कि पानी उनके पवित्र चरणों को स्नान करवाने की इच्छा रखता था। पूरे वेग से चलने वाले बाढ़ के पानी ने महान् बाबा जी को रास्ता देने के पश्चात् पुनः उसी वेग में बहना आरम्भ कर दिया।
प्रकृति रहस्यमय ढंग से महापुरुष बाबा नंद सिंह जी महाराज का आदर किया करती थी। तीव्र वेग व भयानक आवाज़ें करता पानी एकदम विनत हो गया तथा बाबा जी के पवित्र चरणों को चूमने व स्पर्श करने के बाद वह शांत हो कर बहने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति झुक कर अपने स्वामी के पवित्र चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए स्नान कर रही हो। बाबा कर्म सिंह जी के सेवक इस अलौकिक चमत्कार को देख कर आश्चर्य चकित रह गए। उन्होंने बाबा नंद सिंह जी के दैवी सामथ्र्य के आगे सिर झुकाया तथा ये सेवक अपने रूहानी स्वामी बाबा कर्म सिंह जी महाराज के पास गए। उन्होंने उन्हें आँखों देखा सारा वृतांत सुनाया। बाबा कर्म सिंह जी ने अपने सेवकों को बताया कि यह वही बाबा नंद सिंह जी महाराज हैं जो ‘सौ साखी’ में सब से शिरोमणि हैं। जब सेवक आदर सहित बाबा नंद सिंह जी महाराज को लेने के लिए उस स्थान पर वापस आए तो शिरोमणि बाबा नंद सिंह जी महाराज उस स्थान को त्याग चुके थे।
भै विचि चलहि लख दरियाउ॥
भै विचि अगन कढे वेगार॥
भै विचि धरती दबी भारि॥
भै विचि इंदु फिरै सिर भारि॥
भै विचि राजा धरम दुआरु॥
भै विचि सूरजु भै विचि चंदु॥
कोह करोड़ी चलत न अंतु॥
भै विचि सिध् बुध सुर नाथ॥
भै विचि आडाणे आकास॥
भै विचि जोध महाबल सूर॥
भै विचि आवहि जावहि पूर॥
सगलिया भउ लिखिआ सिरि लेख॥
नानक निरभउ निरंकारु सचु एवुफ॥
प्रभु के भय में यह पवन बहती है। ये लाखों दरिया भी प्रभु के भय से बहते हैं। प्रभु के भय से यह अग्नि सभी कार्य करती है। प्रभु के भय से ही इस पृथ्वी ने भार उठाया हुआ है। ईश्वर के भय से ही मेघ इधर-उधर, ऊपर-नीचे घूम रहे हैं। प्रभु के भय से धर्मराज उन के द्वार पर खड़ा है। सूर्य व चाँद प्रभु के भय से चलते हैं तथा सहस्त्रों, लाखों, करोड़ों मीलों का सफर तय करते हैं। सिद्ध व ज्ञानी पुरुष देवी-देवता व योगी प्रभु के भय में हैं। प्रभु के भय से ही आकाश पैफला व टिका हुआ है। योद्धा तथा शक्तिशाली शूरवीर सभी प्रभु के भय व आदेश में रहते हैं। प्रभु के भय में ही अनगिनत संख्या में लोग आते-जाते रहते हैं। प्रभु का यह भय सभी में समाया हुआ है, सभी उसी के भय के अन्तर्गत आते हैं। गुरु नानक कहते हैं कि एक सच्चा निरंकार ही निर्भय है।