चरण-कमलों के स्पर्श का प्रताप
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक बार एक पवित्र साखी सुनाई।
दशमेश पिता साहिब श्री गुरु गोबिन्द साहिब का दरबार सजा हुआ है। कीर्तन की चौकी संगत से भरपूर है। पावन शबद (लेखु न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि) की इलाही धुन में सारी संगत आनंद में डूबी है। काज़ी सलारदीन गुरु गोबिन्द साहिब जी के दर्शनों के लिए आए तो सिखों ने बड़े सत्कार के साथ उन्हें एक ओर स्थान दिया। कीर्तन के शब्द
सुनते-सुनते उनके मन में एक शंका उत्पन्न हुई कि यदि लेख ही नहीं मिटेगा तो गुरु-दरबार में आने का क्या लाभ हुआ! कीर्तन चौकी के उपरान्त अन्तर्यामी सच्चे पातशाह श्री गुरु गोबिन्द साहिब पूछते है - काज़ी साहिब, उंगुली में यह क्या डाला हुआ है? गरीबनिवाज़, यह मोहर-छाप है। काज़ी के तौर पर जब मैं कोई फ़तवा देता हूँ तो यह मोहर लगा देता हूँ। काजी सलारदीन से दशमेश पिताजी ने पूछा कि ‘इस मोहर-छाप में दो अक्षर किस तरह बने हुए हैं।’ काज़ी सलारदीन ने उत्तर दिया कि ‘‘सच्चे पातशाह इस मोहर-छाप के अक्षर उलटे हैं, पर जब ये कागज पर लगते हैं तो सीधे हो जाते हैं।’’
दशमेश पिताजी ने कागज मंगाया और फ़रमाया- इस मोहर-छाप को कागज़ पर लगाकर दिखाओ। काजी सलारदीन ने कागज़ पर मोहर लगाकर दिखायी और कहा गरीबनिवाज़ यह मोहर-छाप, जिसके अक्षर उलटे थे, मुँह के बल से कागज पर लगी तो इसके उलटे अक्षर सीधे हो गए।
सबके दिलों की जानने वाले अन्तर्यामी साहिब श्री गुरु गोबिन्द साहिब जी ने फरमाया - ‘काजी साहिब जब कोई सिख अहंकार रहित होकर गुरु के चरणों पर अपने मस्तक को रख देता है तो उसके मस्तक के उलटे लेख सीधे हो जाते हैं।’ काजी सलारदीन उठकर गुरु-चरणों पर गिर पड़े और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।
यह साखी सुनाते हुए बाबा नंद सिंह जी महाराज ने फिर स्वयं फ़रमाया कि लेख नहीं मिटता अपनी मन की करने वाले ‘मनमुखों’ का, लेख नहीं मिटता अहंकारियों का, लेख नहीं मिटता निंदकों का। यदि गुरुमुख (गुरु के अनुसार चलने वाले) का भी लेख नहीं मिटा तो फिर गुरुमुखताई का क्या प्रताप?
ऋषि के शाप से अहिल्या शिला बन गयी थी। भगवान् रामजी के चरणों के स्पर्श से उसका कल्याण हुआ और वह आकाश की ऊँचाइयों को प्राप्त हुई। यही सतगुरु के चरणों का प्रताप और आश्चर्य है।
साध संगत जी, जो गुरु चरणों में अर्पित हो गया है उस का तो लेखा (कर्म-लेख) ही समाप्त हो गया। उसे तो पहले ही क्षमा हासिल हो चुकी है। यह पावन स्पर्श पा लेने के बाद कौन-सा शाप और कौन-सा पाप ठहर सकता है?