सिख धर्म पतिव्रत धर्म है
सिख धर्म पतिव्रत धर्म है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की मर्यादा के अनुसार एक सिख विशेष तौर पर सतगुरु का उपासक होता है। अपने सर्वव्यापक भगवान् के सच्चे और पवित्र रूप में लीन, सिख अन्य आध्यात्मिक मार्गों व अन्य पूजा स्थानों के लिए अपने मन में प्रेम और आदर रखता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में परमात्मा के सभी भक्तों, उनके रंग-रूप, धर्म, जाति और वर्ग का बिना किसी भेदभाव के एक जैसा सम्मान व एक जैसी प्रतिष्ठा है। एक सिख पूजा और प्रार्थना की सभी विधियों का सम्मान करता है।
इन स्थूल आँखों से सभी दैवी स्वरूपों की दिव्यता को देखना असम्भव है किंतु जब किसी पर दैवी दृष्टि की कृपा होती है तो उसके लिए यह सब प्रत्यक्ष हो जाता है कि सारे स्वरूप एक ही सर्वोच्च स्रोत से प्रकट हुए हैं।
एक सच्चा सिख अपने प्रियतम सतगुरु के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुन सकता। वह स्वयं भी किसी दूसरे की आस्था, विश्वास, धार्मिक पंथ, ग्रंथों और पूजा स्थानों के विरुद्ध एक भी ऐसा शब्द नहीं बोलता जिससे किसी की भावना को ठेस पहुँचे।