माँ दा दूध बच्चे दे, पियार विच उतरदा है।
(माँ का दूध बच्चे के प्यार में उतरता है)
It is only such an emptied heart, yearning only for the exclusive love of Lord Guru Nanak which gets filled with Grace and Glory of Sri Guru Nanak Sahib.
(माँ का दूध बच्चे के प्यार में उतरता है)
प्यासी व गुरु-दर्शनों के लिए तरसती रूहों के लिए गुरु जी कृपा के दूध की नदियाँ बहा देते हैं। बच्चे को जब भी भूख लगती है, माँ को शीघ्र ही पता चल जाता है। जिस प्रकार बच्चे के प्यार में माँ का दूध उतर आता है, उसी प्रकार प्रभु-भक्त की शुद्ध भावना तथा आकांक्षा देखकर वाहेगुरु अपने सेवकों के लिए पे्रम तथा कृपा रूपी दूध निरंतर प्रदान करता है।
प्रभु की कृपा का यह दूध शिशु-सुलभ भोलेपन, पवित्रता और निष्ठा से शीघ्र प्रवाहित होता है। प्रभु के भक्त को यह दूध माँगना नहीं पड़ता। प्रभु की कृपा को जन्म देने के लिए एक आशा ही काफी है।
चाहे बच्चा सो रहा हो तो भी माँ उस को दूध पिला रही होती है, बच्चे को पता भी नही होता। उसी प्रकार प्रभु, हमारे सच्चे माता-पिता की तरह अपने सेवक को रूहानी खुराक देते रहते हैं तथा उस का पालन-पोषण करते रहते हैं।
बाबा नरिन्द्र सिंह जी इसका विस्तार में इस प्रकार वर्णन करते हैं-
जो हृदय मानवीय आकांक्षाओं से मुक्त है, वह सभी मानवीय दुर्बलताओं से ऊपर उठ जाता है। अहं से मुक्त हो जाता है। जिस हृदय में ये सभी लालसाएँ, ईष्र्या, द्वेष, अहं की दुर्बलताएँ निवास नहीं करतीं, वह हृदय विनम्रता के गहरे सागर में आनंद-मग्न रहता है। वह हृदय स्वार्थ व स्वादों के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है।
ऐसे रिक्त हृदय में प्रभु-प्रेम का आगमन होता है, यह हृदय मुक्ति की भी कामना नहीं करता, मोक्ष की भी आकांक्षा नही रखता।
इस प्रकार पवित्र हुए हृदय में केवल सतगुरु नानक देव जी की प्रेमा भक्ति की ही चाह रहती है। गुरु नानक साहिब स्वयं ही कृपा करके आशीर्वाद देते हैं तथा इस खाली हृदय की पूर्ति करते हैं।