नयनों में गुरु-चरण (विचि अखी गुर पैर धराई)
एक पहाड़ी राजा का मंत्रा जो श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी का सिख बन गया था, उसे सजा के तौर पर अंधा कर दिए जाने के लिए यातनाएँ दी गयीं। उसे बाहर एकान्त मे ले जाया गया और आँखों में गर्म सलाखें चुभो दी गयीं। उन अज्ञानियों ने अपनी ओर से उसे अंधा कर के एकान्त में फेंक दिया। उस समय दशमेश पिता (श्री गुरु गोबिंद सिंह) जी अपने दरबार में सुशोभित थे। जैसे ही मन्त्रा की आँखों में सलाखें चुभोई गयीं, उसी वक्त दशमेश पिता जी के दोनों चरणों से खून के फव्वारे फूट पडे़। सिख बहुत हैरान हुए। उन्होंने विनती करते हुए पूछा- महाराज ! यह कैसा कौतुक है। उधर सिख (मंत्रा) उठा, उसके नेत्रा ज्यों के त्यों ठीक थे। वह चलता हुआ गुरु-दरबार में पहुँच गया। गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के चरण-कमलों में माथा टेकने के बाद पूछा- हे सच्चे पातशाह ! ये चरण तो मेरे नेत्रों में बसे हुए थे, इन की छवि (तस्वीर) तो साफ़ थी, ये पट्टियाँ तो नहीं बंधी हुई थी। इस पर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज ने फ़रमाया- हे सिख! यह सब तो तुम्हारी मेहरबानी है। तुम ने इन चरणों को नेत्रों में बसाया हुआ था। उन मूर्ख लोगों ने तो तुम्हारे नेत्रों में सलाखें चुभोईं, जिन में हमारे चरण बसे हुए थे। इसलिए वह सलाखें हमारे चरणों में आ चुभीं तो घाव देखकर सिखों ने यहां पट्टियाँ बांध दी-
सभु दिनसु रैणि देखउ गुरु अपुना
पिता जी इस संदर्भ में एक साखी सुनाया करते थेः
गुरु पारब्रहमु सदा नमसकारउ।।
जिस सिख ने अपने नेत्रों को गुरु-चरणों का वास बना लिया हो, जिनके नेत्रों में गुरु-चरण बसते हों, वे नेत्रा पूजनीय हैं।
ऐसे नेत्रों वाला मनुष्य, ऐसे नेत्रों वाला सिख चरणों की ज्योति से प्रकाशित एक मंदिर है। वह जिसे भी देखता है, उसके भाग्य जाग उठते हैं। उसकी नज़र में गुरु-चरणों के प्रकाश का जादुई असर होता है। हे
मैं उस नौंवे गुरु नानक के दर्शनों के लिए तरसता और बिलखता हूँ, जिसके दर्शन करता हुआ भाई मतिदास आरे से दो टुकड़ों में चीरा जाता हुआ भी आह नहीं भरता, वह पलकें नहीं झपकता, अपलक दर्शन करता हुआ वह गुरु तेग बहादुर साहिब जी के निरंकार स्वरूप के परमानंद में ऐसे लीन हो जाता है, जैसे जल में जल लीन होता है।
जिउ पानी संगि पानी।।