प्रेमा भक्ति
जिस समय सेवक ने बाबा नंद सिंह जी की मर्यादा के विषय में लिखना आरम्भ किया, उस समय श्रद्धालु बाबा हरनाम सिंह जी ने मुझे दृष्टि प्रदान की और एक नई रोशनी दिखाई।
बाबा नंद सिंह जी महाराज बाल्यकाल से ही गुरु नानक साहिब व श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अथाह विश्वास व श्रद्धा रखते थे। इस साधना से उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के चरण-कमलों की पूजा-अर्चना, श्रद्धा, आदर व तन-मन-अर्पण की विलक्षण मर्यादा के अनन्तकाल से प्रकाशमय पद को प्राप्त किया हुआ था। इस विलक्षण मर्यादा से बाबा नंद सिंह जी महाराज की प्रेमाभक्ति की सुगंध पैफलती है। श्रद्धालु जन बाबा जी तथा उनके प्रभु-प्रीतम गुरु नानक साहिब की कृपा का आनंद प्राप्त करते हैं।
बाबा नंद सिंह जी महाराज द्वारा प्रचलित की गई मर्यादा कोरा कर्म-कांड नहीं है। इस मर्यादा में सिख श्रद्धालु श्री गुरु नानक साहिब की प्रत्यक्ष हजूरी में बैठा अनुभव करता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की सेवा, पूजा तथा श्रद्धा में व्यतीत प्रत्येक क्षण का अनन्त फल प्राप्त होता है। मेरा यह तुच्छ-सा निजी अनुभव है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की हजूरी में व्यतीत कुछ समय कभी भी नष्ट नहीं होता तथा हमारे प्रिय गुरु नानक साहिब जी कभी हमें अनदेखा नहीं करते। वह अवश्य ही इसे स्वीकार करते हैं।
प्रेम दे नाल सच्ची भक्ति शुरू हुन्दी है।
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक बार समझाया कि भक्ति नौ प्रकार की होती है- रूहानी महानता के वचन सुनना, कीर्तन करना, सेवा, नाम-सिमरन आदि आदि। पर पूरे प्रेम व श्रद्धा से की गई भक्ति ही स्वीकार हेाती है। सच्ची प्रेमा-भक्ति, गहरी व प्रबल चाह के बिना प्रभु की प्राप्ति नहीं हो सकती।