सेवक की चरण-धूलि लेना
एक बार नंद सिंह जी महाराज एक घने जंगल में से नंगे पाँव जा रहे थे। काँटे चुभने के कारण उन के पाँवों से बहुत खून बह रहा था। बाबा जी एक वर्ष की घोर तपस्या के उपरान्त रेलवे स्टेशन की ओर जा रहे थे। स्टेशन बहुत दूर था। रास्ते में उनको एक ऊँट वाला मिल गया। उसने नीचे उतर कर बाबा जी से ऊँट की सवारी करने की विनम्र प्रार्थना की। उसने बाबा जी को बहुत आदर सहित ऊँट के ऊपर बैठाया तथा उन्हें लेकर रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा। चलते-चलते उसने एक-एक कर बाबा जी के लहूलुहान चरणों से सभी काँटे निकाल दिये। स्टेशन पर पहुँच कर उसने टिकट खरीदी तथा बाबा जी को आराम से गाड़ी में बिठा कर विदा ली। बाबा जी अब बाबा हरनाम सिंह जी के दरबार में पहुँच गए। ज्यों ही बाबा हरनाम सिंह जी के चरण-स्पर्श करने लगे तो बाबा हरनाम सिंह जी ने उनवेफ पवित्र चरणों की धूल को अपने मस्तक पर लगा लिया। बाबा नंद सिंह जी चकित हुए। विलाप करने लगे। उनवेफ विलाप करने पर बाबा हरनाम सिंह जी मुस्कराए तथा कहने लगे- फ्जब रेलवे स्टेशन को आते हुए हमने आपवेफ पवित्र चरणों से काँटे निकाले थे, उस समय आप क्यों नहीं रोए?य् पवित्र शिष्य व रूहानी गुरु के आपसी सम्बन्ध इतने अनोखे, रहस्यमय व चमत्कारी थे! रूहानी प्रेम व रूहानी आदान-प्रदान बहुत निराला था। उस समय यह कौन जानता था कि घोर एकान्त में लम्बी समाधियाँ लगाने वाले ये प्रभु ज्योति-स्वरूप आदरणीय बाबा नंद सिंह जी महाराज के महान् रूहानी उपदेशक विश्व भर में प्रसि( होंगे।