दिव्य बालक और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब
यह घटना उस समय की है जब बाबा नंद सिंह जी महाराज लगभग छह वर्ष के बालक थे। एक दिन उन्हें खेतों में हल चला रहे अपने बड़े भाई सरदार भगत सिंह जी के लिए लस्सी ले जाने के लिए कहा गया। अपने छोटे भाई को आता देख सरदार भगत सिंह ने हल चलाना बंद कर दिया और लस्सी पीने के लिए एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। उन्होंने स्नेहपूर्वक दिव्य बालक को थोड़ी देर हल चलाने के लिए कहा।
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने हल चलाना शुरु कर दिया और जब वे खेत के दूसरे किनारे पर पहुँचे तो उन्होंने मोड़ काटने की बजाय हल रोक दिया ओर वहीं खडे़ हो गए। उन्हें इस तरह खड़ा देखकर सरदार भगत सिंह जी हैरान थे। लस्सी पीकर वे बाबा नंद सिंह जी महाराज के पास पहुँचे, जो अभी भी मुँह दूसरी ओर किए खड़े थे। उन्होंने वहाँ पहुंचते ही बाबा जी से हल रोक कर ऐसे खड़े हो जाने का कारण पूछा।
पवित्र बालक ने आदरपूर्वक अपने बड़े भाई को उत्तर देते हुए कहा- ‘‘सामने के घर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी सुशोभित हैं, इसलिए वे मुड़कर अपनी पीठ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की ओर नहीं कर सकते।’’ दिव्य बालक का यह उत्तर सुन कर सरदार भगत सिंह हैरान और अवाक् रह गए। एक साल पहले ही उन्होंने अपने इस छोटे भाई को एक गहरे कुँए की मुंडेर पर एक तपस्वी और सन्यासी की मुद्रा में साधना में लीन बैठे हुए देखा था। आज वह एक नया ही चमत्कार देख रहे थे। पवित्र बालक के मन में वे सर्वोच्च और अति महान् जगतगुरु श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम देख रहे थे।
उस समय किसी को यह मालूम नहीं था कि यह मासूम बालक जो कुछ भी कह रहा था, वह पूर्ण रूप से सत्य है क्योंकि बाबा नंद सिंह साहिब ने अपने पूर्ण जीवन काल में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के प्रति शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से कभी भी पीठ नहीं की।
सत्कारयोग्य साध संगत जी, आज तक के समूचे आध्यात्मिक इतिहास में कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलता है जहाँ किसी भी अवतार ने अपने गुरु के प्रति अपनी प्रेम भावना को इस प्रकार प्रकट किया हो।
बाबा नंद सिंह जी महाराज अवतारी पुरुष थे। वे सर्वशक्तिमान श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के प्रति जन्म से ही जागरूक थे। उनके पवित्र जन्म के समय दिव्य प्रकाश की अनूठी रोशनी का दृश्य, पाँच साल की आयु में ही गहरे कुँए की मुंडेर पर पद्मासन लगा कर महातपस्वी की तरह समाधि में लीन होना और मात्रा छह साल की अबोध अवस्था में ही यह घोषणा कर देना कि वे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के प्रति अपनी पीठ नहीं कर सकते; ये सब घटनाएँ सिद्ध करती हैं कि सचमुच ही धरती पर एक सच्चे गुरमुख का जन्म हुआ था और बचपन से ही उनके श्वासों में श्री गुरु ग्रन्थ सहिब जी समाए हुए थे।
बाबा नंद सिंह जी महाराज को न तो किसी से कोई मोह था और न ही संसार में उनकी कोई रुचि ही थी, फिर भी महान बाबा हरनाम सिंह जी महाराज ने बाबा नंद सिंह जी महाराज को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की महिमा को सूर्य के प्रकाश की भांति चारों ओर फैलाने का आदेश दिया। उनका निर्देश था कि वे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब से प्रेम, सेवा, पूजा के भाव का परचम सम्पूर्ण विश्व में फहरा दें। बाबा हरनाम सिंह जी की कृपा से बाबा नंद सिंह जी महाराज ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की मर्यादा को स्थापित करके और विश्व को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के प्रति सच्चे प्रेम को जागृत करने का अनुपम मार्ग दिखलाया।
गुरमुख का अर्थ है- गुरु का वह सिख जिस का मुख हर समय गुरु की ओर रहता है और बाबा नंद सिंह जी महाराज ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुरमुख का चेहरा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से हमेशा गुरु की ओर ही रहता है।
इस संदर्भ में श्री गुरु अमरदास जी की अपने अति प्रिय गुरु के प्रति ‘अनूठी सेवा’ का स्मरण हो आता है। अपने प्यारे सतिगुरु की सेवा में दिन-रात लीन रहने वाले श्री गुरु अमरदास जी श्री गुरु अंगद साहिब जी के स्नान के लिए हर रात व्यास नदी से पानी भर कर लाया करते थे।
इस दिव्य बालक में यह कौन-सी तपस्या बोल रही थी। ये कौन-से पूर्व कर्म और कौन-सी पिछली कमाई बोल रही थी। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ ये कौन-से पिछले संस्कार गूँज रहे थे। इस ईश्वरीय बालक में कौन-सा महान गुरमुख प्रकट हुआ था जो बाल्यकाल से ही शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से ही गुरु के साथ जुड़ा हुआ था। उस समय यह किस को पता था कि यह दरगाही बालक परमात्मा के सारे सामर्थ्य, शक्ति और कृपा को अपने साथ ही लेकर आया है और एक दिन यह सारी मनुष्य जाति और सृष्टि का मुख श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की ओर मोड़ देगा।
इस ईश्वरीय बालक की हर चीज़, हर वचन और हर कर्म कमाल-ही-कमाल था। जहाँ साधारण जन अपनी सारी आयु कथनी में निपुण होने में ही लगा देते हैं, वहाँ बाबा नंद सिंह जी महाराज कथनी, करनी और होनी के स्वयं ही प्रत्यक्ष एवं प्रकट स्वरूप थे। उनके पवित्र वचन श्रवण करने से ईश्वर की पहचान और प्राप्ति होती थी। बिछुडे़ हुओं का परमात्मा से मिलाप होता था। उन के पवित्र वचनों से तड़पती आत्माओं की प्यास मिट जाती थी। वे जिस भी वचन का अपने मुख से उच्चारण करते थे, उस की सब से बड़ी मिसाल वे स्वयं होते थे। वह शब्द उन पर पूरा उतरता था। वे स्वयं अपने प्रत्येक वचन का प्रत्यक्ष स्वरूप थे। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब उन के रोम-रोम में बसे हुए थे और वे स्वयं श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के हर ‘‘सबद’’ के सब से बड़े उदाहरण और स्वरूप थे।
इस मातृभूमि पर ऐसे वचनों का उच्चारण तो आज तक किसी बालक ने नहीं किया था। यह महान शक्तिशाली पूर्व सम्बन्ध इस ईश्वरीय बालक के हृदय की गहराइयों से निकल कर धरती माता के भाग्य जगाने लगा था। यह कौन-सी आह थी, कैसी तड़प थी, ये प्रेम का कौन-सा निखार और रूप-रंग था जो आज तक के सारे कर्मोंं, सारे कौतुकों, सारे अजूबों और सारे उदाहरणों को परास्त और पराजित कर रहा था।