कठिन संयम
अप्रैल 1979 के एक शुभ दिवस पर मेरे पूज्य पिता जी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की समक्ष-सेवा में पाँच छह घंटों की लीनता के उपरान्त अपने प्रार्थना-कक्ष से बाहर निकले तो उन्होंने हम सब को फौरन गोइन्दवाल साहिब चलने के लिए तैयारी करने को कहा।
जब मैंने उस पवित्र स्थान पर जाने के प्रयोजन के बारे में पूछा तो उन्होंने फ़रमाया कि बाबा नंद सिंह जी महाराज की शुभ इच्छा है कि मई 1979 में श्री गुरु अमरदास जी की पंचशती के पावन प्रकाश उत्सव के अवसर पर उनके सम्मान में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के 101 अखण्ड पाठ करवायें जायें।
गोइन्दनवाल साहिब पहुँच कर पिताजी ने पवित्र स्थान और श्री गुरु अमरदास जी के सम्माननीय उत्तराधिकारियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान उनकी आँखों से निरन्तर आंसू बहते रहे, जो कि महान गुरु के एक सच्चे प्रेमी की वैराग्य अवस्था का के सूचक थे।
इसके बाद उन्होंने एक-सौ-एक अखण्ड पाठों के आयोजन हेतु सुयोग्य प्रबन्धकों को आवश्यक राशि भेंट की। सब उनके प्यार और विनम्र व्यवहार से इतने प्रभावित थे कि उनके भी आंसू नहीं थम रहे थे।
उन्होंने इतने अखण्ड पाठों का एक साथ प्रबन्ध करने में अपनी असमर्थता जतायी और यह भी बताया कि एक ही समय में दो या तीन अखण्ड पाठों से ज़्यादा का आरंभ करना उनके लिए संभव नहीं था। इस सबके बावजूद उन्होंने ग्यारह अखण्ड पाठों को एक साथ आरंभ करने का पूर्ण विश्वास दिलाया और परिणामस्वरूप पूरे उत्साह से इस कार्य में जुट गए।
निश्चित तिथि तक केवल इक्यावन अखण्ड पाठ ही सम्पन्न हो पाए। शेष अखण्ड पाठ फगवाड़ा के मॉडल टाउन स्थित गुरुद्वारा साहिब में सम्पन्न हुए।
इस पवित्र अवसर पर तीन बैण्डों का प्रबन्ध किया गया। इनमें से पुलिस के ब्रास और पाइपर नाम के दो बैण्ड थे, जबकि एक फौजी बैण्ड था। पिताजी ने प्रत्येक सेवा अपने प्रीतम बाबा नंद सिंह जी महाराज के प्रेमरंग में डूब कर की। अपने अतिप्रिय मालिक बाबा नंद सिंह जी महाराज की ओर से पिताजी ने सभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों में सभी प्रकार की सेवा की। सभी अखण्ड पाठ सर्वशक्तिमान, परम दयालु, परम प्रिय साहिब श्री गुरु अमरदास जी के सम्मान में बाबा नंद सिंह जी महाराज के नाम से करवाए गए।
गुरुद्वारों में एक ही समय अनेकों अखण्ड पाठों का दिव्य प्रवाह एक बेहद अद्भुत व मनोहर दृश्य था। अखण्ड पाठों के भोग के उपरान्त पिताजी द्वारा सलामी दी गयी। काफ़ी समय तक बैण्ड पर भक्ति-संगीत प्रस्तुत किया गया। बीबी भोलाँ रानी और बीबी अजीत कौर जी ने पवित्र शब्द-कीर्तन की शुरुआत ‘श्री गुरु अमरदास जी तेरी जै होवे’ की आनन्दमयी स्वर-लहरी के साथ की।
हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में यह हृदयस्पर्शी दिव्य दृश्य था। श्री गुरु अमरदास जी के लिए अर्पित यह एक सांझी श्रद्धांजलि व सलामी थी। वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने सर्वशक्तिमान श्री गुरु अमरदास जी की पवित्र उपस्थिति को अनुभव किया।
बाबा नरिन्दर सिंह जी ने कठिन तप और कई चालीसे धारण किए।
महान बाबाजी की संगत के लिए और ज़रूरतमंद लोगों की सेवा में आयोजित अनगिनत अखण्ड पाठों व सम्पुट अखंड पाठों में अपना सबकुछ अर्पित करने के बाद बाबा नरिन्दर सिंह जी ने एक बार फरमाया-
वास्तव में यह मेरे एक भाई द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर था, जो ख्ेती से प्राप्त हुई सारी कमाई को गुरु सेवा में खर्च कर देने से दुखी था। उसे इस बात का अहसास नहीं था कि एक पवित्र आत्मा जब महान गुरु के पावन चरणों में अपना सब कुछ समर्पित करती है कब वह सब के लिए मुक्ति का स्रोत बन जाती है।
अपने प्रीतम नंद सिंह जी महाराज को पूर्ण रूप से जीत लेना उन सैकडों बेहद खूंखार डाकुओं को हराने से कहीं अधिक कठिन था, जिनका मुकाबला पिताजी ने अपनी नौकरी के दौरान चुनौतीपूर्ण स्थितियों में सफलतापूर्वक किया था।
अपने प्यारे मालिक बाबा नंद सिंह जी महाराज के प्रति हार्दिक आभार वे सबके सामने प्रायः खुले तौर पर अत्यंत हृदयस्पर्शी शब्दों में किया करते थे।