इलाही वाणी की शक्ति व सामथ्र्य
... Then came the divine oracle of Mahan Baba Nand Singh Ji Maharaj :
Oh my son, whosoever recites this prayer to the All Merciful Lord Guru Nanak shall be saved from forthcoming terrible times of this Kalyug.
जहाँ तक मुझे याद आता है, 13 या 14 दिसम्बर 1971 की सुबह का समय रहा होगा। तब हम पठानकोट में रहते थे। पठानकोट की संगत के कुछ लोगों ने पिता जी के पास आकर निवेदन किया कि उन दिनों पठानकोट सुरक्षित नहीं है, इसलिए परिवारों के साथ यहाँ से कहीं चले जाना चाहिए। भारत-पाकिस्तान युद्ध होने के कारण उन दिनों सारा-सारा दिन पठानकोट पर हवाई हमले होते रहते थे।
पिता जी यह सुनकर कुछ समय के लिए चुप हो गए। उन्होंने बाबा नंद सिंह जी महाराज को याद किया तथा फिर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी से इस पवित्र शब्द का पाठ करते हुए बाबा नंद सिंह जी महाराज की छड़ी से पठानकोट के चारों तरफ एक काल्पनिक घेरा बना दिया:
चउगिरद हमारै राम कार दुखु लगै न भाई॥
सतिगुरु पूरा भेटिआ जिनी बणत बणाई॥
राम नामु अउखधु दीआ एका लिख लाई॥1॥ रहाउ॥
राखि लीए तिनी रखनहारि सभ बिआधि मिटाई॥
कहु नानक किरपा भई प्रभ भए सहाई॥2॥
प्रभु की शरण में कोई खतरा नहीं रहता। मेरे चारों ओर राम-नाम की (कार) सुरक्षा का घेरा है, इसलिए मेरे भाई मुझे कोई दुःख नहीं पहुँच सकता। मुझे पूर्ण गुरु प्राप्त हो गया है, उसने मुझे अपनी शक्ति के अनुसार ढाल दिया है। उसने मुझे प्रभु-नाम का वरदान दिया है। सर्वपालक प्रभु ने मुझे सब कठिनाइयों से सुरक्षित कर लिया है। गुरु नानक जी कहते हैं, प्रभु ने कृपा करके मेरी रक्षा की है।
उन्होंने प्रभु रूपी वाणी की इस महाशक्ति व सामथ्र्य द्वारा पठानकोट के चारों ओर एक रेखा खींच दी। उन्होंने संगत को बिना किसी भय-डर से पठानकोट में ही रहने की सलाह दी तथा कहा कि अब दुश्मनों का कोई भी जहाज पठानकोट की ओर नहीं आएगा। इस के उपरान्त पठानकोट पर कोई भी हवाई हमला नहीं हुआ। बेशक दूसरे ठिकानों पर लड़ाई बंद होने तक हवाई हमले होते रहे। यह श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी प्रभु वाणी की शक्ति व सामथ्र्य का चमत्कारी प्रसाद था।
कई वर्षों उपरान्त जब मैंने पिता जी से पूछा कि इस के पश्चात् दुश्मन के किसी जहाज ने पठानकोट पर आक्रमण क्यों नहीं किया तो उन्होंने मुझे उपर्युक्त वार्ता सुनाई थी।
सेवा निवृत होने के पश्चात् उन्होंने बहुत समय घोर तपस्या में गुज़ारा। वह एक वर्ष में कई बार चालीसा करते थे। मूल मंत्रा (नानक होसी भी सच तक) श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के एक शब्द व सतनाम श्री वाहेगुरु की माला के एक-एक मनके द्वारा जाप करने में बारह घंटे लगाते थ। वह इस जाप की 32 माला ‘108 मनके वाली) 40 दिन तक निरन्तर करते। यह सिमरन तथा भक्ति दैनिक नित्य नियम से अलग होती।
एक बार उन्होंने मुझे बताया कि एक बार इस शब्द (ताती वाओ न लगई) का भी चालीसा पूर्ण किया था। गुरु की कृपा से शब्द का चालीसा सफलतापूर्वक पूरा करने से ध्यान उस शब्द के रूहानी मण्डल में विसमाद से जुड़ जाता है। फिर इस शब्द की शक्ति तथा सामथ्र्य से रूहानी चमत्कारों का नया दौर आरम्भ होता है।
इन चालीसाओं के दौरान उनको भी अलौकिक अनुभवों के द्वारा प्रभु प्राप्ति की उच्च अवस्था मिलती थी। एक बार पिता जी ने अपनी रूहानी अवस्था में मुझे अपनी सचखण्ड की यात्रा के विषय में इस प्रकार बताया: “एक बार बाबा नंद सिंह जी महाराज मुझे सचखण्ड तक ले गए। अत्यधिक आनंद, कृतज्ञता व सचखण्ड की इलाही-शान से अचम्भित होकर मैंने बाबा नंद सिंह जी महाराज की पवित्र हजूरी में परम समस्त जोत निरंकार व सतगुरु श्री गुरु नानक देव जी के समक्ष शीश झुकाया। जब मैंने अपना शीश ऊपर उठाया तो मैंने सतगुरु श्री गुरु नानक देव जी को तीनों स्थानों पर विराजमान देखा। वे स्थान थे:
- परम समस्त जोत निरंकार
- गुरु नानक पातशाह व
- बाबा नंद सिंह जी महाराज
एक बार पिता जी को चालीसे के दौरान यह सारा संसार जलता हुआ नज़र आया था। पिता जी ने ऊपर की ओर जाना प्रारम्भ कर दिया। वे जब रूहानी मण्डल के बहुत ऊँचे उड़ गए तो इस धारणा का गायन किया।
आकाश में पिता जी द्वारा गाई जाने वाली तथ जीवन-दान देने वाली इस धारणा का लोगों पर चमत्कारी प्रभाव हुआ। तब बाबा नंद सिंह जी महाराज, ने आकाशवाणी की:ओह समें दी अग तो बच जाएगा।