प्रेमस्वरूप बाबा हरनाम सिंह जी महाराज का बाबा नरिन्द्र सिंह जी पर अनन्त कृपा करना
Oh Pandit, sun, sadha ati piara putt band liyaegaa tay saanu bare hi piar naal salamian deveygaa - yaad rakheen.
Listen Oh Pandit, my most beloved son will bring bands here and offer salutations here with utmost love- remember this.
“ਐ ਪੰਡਿਤ ਸੁਣ, ਸਾਡਾ, ਅਤੀ ਪਿਆਰਾ ਪੁੱਤਰ ਬੈਂਡ ਲਿਆਏਗਾ ਤੇ ਸਾਨੂੰ ਬੜੇ ਹੀ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਸਲਾਮੀਆਂ ਦੇਵੇਗਾ, ਇਹ ਗੱਲ ਯਾਦ ਰੱਖੀ|”
दिसम्बर 1972 में बाबा नरिन्द्र सिंह जी बाबा हरनाम सिंह जी महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ये दोनों बैंड लेकर भुच्चों कलाँ (जिला भटिण्डा) गए हुए थे। बाबा हरनाम सिंह जी महाराज के वार्षिक समागम वाला शुभ दिन था। अर्धरात्रि का समय था। पूज्य बाबा जी के पवित्र चरणों में बैठे समूह ने भक्ति संगीत की धुन बजानी आरम्भ कर दी। गाँववासी गहरी नींद से जाग उठे तथा उस पवित्र स्थान पर पहुँच गए। वहाँ पर पहले ही बहुत संगत थी। देखते ही देखते श्रद्धालुओं की संख्या हज़ारों में पहुँच गई।
बाबा नरिन्द्र सिंह जी महाराज ने बैंड की सलामी दी और प्रार्थना की:
हे मेरे परम पुरुष स्वामी॥
दादा शब्द पितामह के लिए है, क्योंकि बाबा नंद सिंह जी महाराज उन के आत्मिक पिता थे। सो, बाबा हरनाम सिंह जी महाराज उनके पूज्य दादा स्वरूप थे।
सभी देवी देवते तुम्हें प्रणाम करते हैं।
सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड तेरी स्तुति का गायन कर रहा है।
तुम्हारी महिमा में करोड़ों अखण्ड तथा सम्पुट पाठ हो रहे हैं।
ऐह बाबा नंद सिंह जी महाराज दा कुत्ता
ऐह बाबा नंद सिंह जी महाराज दे दर दा कुत्ता
ऐह बाबा नंद सिंह जी महाराज दे कुत्तियाँ दा कुत्ता
ऐह बाबा नंद सिंह जी महाराज दे कालू कुत्ते दा भी कुत्ता
ऐह बाबा नंद सिंह जी महाराज दा चूहड़ा (भंगी)
तेरे दर पर तुच्छ बैण्ड ले के हाज़र होइआ है
सच्चे पातशाह परवान करो॥
बाबा नंद सिंह जी महाराज का यह विनम्र कुत्ता, बाबा नंद सिंह जी महाराज के दर का विनम्र कुत्ता, बाबा नंद सिंह जी महाराज के कुत्तों का कुत्ता, बाबा नंद सिंह जी महाराज का यह चूहड़ा (भंगी) आपके दर पर बैण्ड की तुच्छ सेवा अर्पित करता है। मेरे स्वामी! मेरे मालिक! इस विनम्र सलामी को स्वीकार करो जी। हे दयालु स्वामी इस तुच्छ सलामी को अपने पवित्र चरणों में प्रेम की तुच्छ भेंट जान कर स्वीकार करो जी।
अपने प्रिय मालिक के प्रेम की दीप्त अग्नि से सहस्त्रों श्रद्धालुओं के हृदयों में भी प्रेम की ज्वाला प्रज्वलित हो गई। प्रत्येक उपस्थित श्रद्धालु का हृदय प्रेम से विलाप करने लगा, संगतों के चेहरे अश्रुधारा से भीग गए। यह उनकी प्रेमाभक्ति की प्रबल भावनाओं का शक्तिशाली व जादुई प्रभाव था।
संगतों को प्रिय बाबा जी ने शुद्ध प्रेम के एक सच्चे वारिस, बाबा जी की नम्रता व कृपा के सच्चे उत्तराधिकारी तथा बाबा नंद सिंह जी महाराज के परम सुख प्रदान करने वाले दरबार के सच्चे उत्तराधिकारी के दर्शन हुए थे।
भावपूर्ण व प्रेम से भीगे नयनों की सलामी के उपरान्त हम अपने पिता जी के साथ एक कमरे में चले गए, जहाँ पर प्रबन्धकों ने उनके आराम का प्रबन्ध किया हुआ था। एक बुजुर्ग पण्डित जी हमारे पीछे-पीछे आँसू बहाते हुए आ रहे थे। आँखों से आँसू बह रहे थे और उनकी नज़र बाबा नरिन्द्र सिंह जी पर टिकी थी। पिता जी ने उन्हें स्नेह-अभिवादन किया और पूरा सम्मान दिया और आदर-पूर्वक नीचे बैठ गए। पंडित जी ने मेरे पिताजी से इस प्रकार वार्तालाप किया:
“मेरा नाम जयलाल है। मैं बाबा हरनाम सिंह जी महाराज के समय से उधर नीचे स्थित मंदिर में पुजारी हूँ। एक बार मैं उन के पास बैठा था। यह 45-50 वर्ष पहले ही बात है। पूज्य बाबा जी ने अचानक पुकारा,
मैंने कहा-
यह बात 45-50 वर्ष पुरानी होने के कारण मझे भूल गई थी, वस्तुतः आज मुझे जब बैण्ड-बाजे की धुनें सुनाई दीं तो मेरे नेत्रों के समक्ष वही पुराना वृत्तांत तैर गया है। मैं उठ कर स्थान पर बाबा हरनाम सिंह जी महाराज के सबसे प्रिय पुत्रा के दर्शन करने के लिए आया हूँ- उस प्रिय पुत्रा के प्रेम व श्रद्धा-भावना के विषय में प्रेम-रूपी बाबा जी ने पहले ही बता दिया था। वही नूर, वही प्रकाश आप के चेहरे से झलक रहा है तथा आप भी उसी के स्वरूप हैं, आप का चेहरा भी बिल्कुल बाबा जी से मिलता-जुलता है।”
यह कहते हुए उस ने पिता जी के चरण-स्पर्श करने का यत्न किया। परन्तु पिता जी ने बड़े आदर सहित उसे ऐसा करने से रोक दिया। पिता जी व पण्डित जी बाबा जी की पवित्र स्मृति में बच्चों की तरह विलाप करने लगे। हमें भी कृपालु व दयालु बाबा हरनाम सिंह जी महाराज की पवित्र याद में रोना आ गया।
प्रेम के स्वामी बाबा जी अपने सबसे प्रिय पुत्रा की अनोखी सलामी की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे, वह 50 वर्ष पहले से ही इंतज़ार में थे। जब उनको सलामी दी गई तो उन्होंने दैहिक रूप में आकर अपने प्रिय पुत्रा से बड़े प्रेमपूर्वक सलामी ली। बहुत-सी उपस्थित संगत-समूह ने आत्मिक हिलोरें देने वाले इस दृश्य को आश्चर्य से अपने चक्षुओं से देखा था।
बाबा जी कई ऐतिहासिक गुरुद्वारों में भी बैण्ड लेकर सलामी देने के लिए जाते थे। इन में सन् 1973 में (कार सेवा के समय) श्री हरिमंदिर साहिब व श्री गुरु अमरदास जी के पाँच सौवें वार्षिक प्रकाश दिवस के समय श्री गोइन्द वाले साहिब में दी गई सलामियाँ वर्णनीय हैं। अगली पुस्तक में इन पवित्र स्मृतियों को विस्तारपूर्वक लिखने का यत्न किया जाएगा।