अलौकिक चमत्कार
एक दिन पूज्य पिताजी, बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र चरणों में अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुँचे तो उनको अन्दर बुलाया गया। बाबा ईशर सिंह जी महान बाबा जी के चरण-कमलों को स्नान कराने की तैयारी कर रहे थे। मेरे पिताजी ने हाथ जोड़कर अनुनय करते हुए बाबा जी से इस पवित्र सेवा के लिए आज्ञा माँगी तो कृपालु बाबा जी ने स्वीकृति प्रदान कर दी।
पिता जी ने बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र चरण एक छोटी परात में रखे, जोकि पानी से आधी भरी हुई थी। काँपते हाथों से उन्होंने चरणों को स्नान कराया। तौलिए से चरण-कमल पोंछने के बाद, बाबा ईश्वर सिंह जी के निर्देशानुसार उन्होंने परात उठाई और चरणामृत को फैंकने के लिए एक ओर को चले गए। इस ओर आकर उन्होंने सहर्ष महान बाबाजी के चरण-कमलों के आनन्दकारी चरणामृत का जी भर कर पान किया और उस चरणामृत में से थोड़ा-सा अंश अपने चेहरे, सिर और शरीर पर छिड़क लिया तथा शेष हिस्सा घास पर डालने का प्रयास किया। इसी प्रयास में उनको एक अनोखा और रहस्यमय दृष्टांत हुआ। उन्होंने देखा कि जो बचा हुआ चरणामृत वे घास पर डाल रहे थे, वह घास पर गिरा नहीं अपितु घास पर गिरने से पहले अदृश्य हो गया।
इस अनोखे चमत्कार से आश्चर्यचकित वे ध्यानलीनता में चले गए और उन्होंने देखा कि हजा़रों दरगाही हस्तियाँ उस चरणामृत की एक बूँद पाने के लिए इस कदर व्याकुल थीं कि उन्होंने चरणामृत की एक भी बूंद नीचे नहीं गिरने दी। उनके चेहरों पर प्रभु प्रेम की तड़प देख कर वे सचमुच विस्मय में पड़ गए। वे किसी चातक पक्षी (पपीहा) के समान थे। जिसे पानी के किसी और रूप की तृष्णा नहीं होती, चाहे वे पवित्र व महान नदियाँ हों, सुन्दर झीलें हों और बहते झरने हों। इनकी अपेक्षा वह विशेष समय पर बादलों से बरसी एक बूँद (स्वाति बूँद) के लिए तड़पता है। किसी और तरीके से अपनी प्यास बुझाने की बजाये वह मरना पसन्द करता है। वह केवल एक बूँद की चाहत रखता है। ऐसा ही हाल दरगाही हस्तियों का था जो बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरण-कमलों के आनन्दमय चरणामृत की एक बूँद के लिए तरस रही थीं।
यह कोई साधारण स्वाति बूँद नहीं थी जिसको पाने के लिए दरगाही हस्तियाँ तरस रही थीं। चात्रिक पक्षी एक नश्वर प्राणी है जोकि स्वाति बूँद के लिए प्यासा रहता है, पर यहां तो दरगाह की हस्तियाँ, तीनो लोकों के मालिक, अपने प्रभु बाबा नंद सिंह जी महाराज के विलक्षण चरणामृत की मात्रा एक बूँद पा लेने के लिए भी लालायित हो रही थीं।
वास्तव में यह एक महान् चमत्कार था। यह कौन सी दिव्य आत्मा थी जो बाबा नंद सिंह जी महाराज के स्वरूप में अवतरित हुई थी। एक ऐसा दिव्य शरीर जिस का प्रत्येक रोम नाम के अमृत से पूर्ण था। महान बाबा जी के पवित्र शरीर के सात करोड़ रोम हर पल नाम की स्तुति करते थे।
बाबा नंद सिंह जी महाराज के चरणामृत की एक बूँद को पाने के लिए सभी दरगाही हस्तियाँ चातक पक्षी की तरह तड़प रही थीं। इस स्वाति बूँद रूपी अमृत बूँद के प्रति जो लालसा उनके दिव्य चेहरों पर थी, वह अविस्मरणीय तथा अवर्णनीय थी।
इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि बाबा नंद सिंह जी महाराज सभी दरगाही हस्तियों के आराध्य और पूजनीय है। नाम के अवतार रूप में वे स्वयं सभी दिव्य सत्ताओं और लोकों के आश्रय हैं।
नाम के धारे खंड ब्रहमंड ॥
नाम के धारे सिम्रिति बेद पुरान ।
नाम के धारे सुनन गिआन धिआन ।
नाम के धारे आगास पाताल ।
नाम के धारे सगल आकार ।
नाम के धारे पुरीया सभ भवन ।
नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन ।
करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए ।
नानक चउथे पद महि सो जन गति पाए॥
बाबा नंद सिंह जी महाराज इस धरती पर ईश्वरीय नाम के एक महान अवतार थे। वे रुहानी महानताओं और विशेषताओं के भंडार हैं। वे अमर हैं। उन के शरीर के सात करोड़ रोमरन्ध्र का तेज ब्रह्माण्ड के सात करोड़ सूर्यों से भी बढ़ कर है।
उनका पवित्र शरीर आनन्द का सागर था। हर वह बूँद जो उनके पवित्र चरणों को स्नान कराने के लिए प्रयुक्त होती थी, वह दरगाही हस्तियों के लिए अत्यन्त मूल्यवान अमृत (स्वाति-बूँद) बन जाती थी। उनके शरीर के प्रत्येक रोम से निकली ईश्वरीय नाम और प्रभु-कृपा की सुगन्ध चारों दिशाओं में फैल जाती थी।
दरगाही हस्तियों के चेहरों पर अनोखी व्याकुलता और तड़प को देखने के उपरांत मेरे पिताजी के चेहरे पर भी एक विशेष प्रकार की तड़प और व्याकुलता उनके जीवनकाल में प्रत्येक पल विद्यमान रही। उनके चेहरे के तेज से साफ़ जाहिर होता था कि बाबा नंद सिंह जी महाराज ही उनका जीवन थे और वे ही उनके प्रेम से भरे हृदय के मालिक थे।इसलिए यह हैरानी की बात नहीं है, जब पिता जी डंके की चोट पर यह घोषणा करते हैं कि बाबा नंद सिंह जी महाराज लोक-परलोक के आप ही मालिक हैं और उनका पवित्र नाम तीनों लोकों को पवित्र करता है।
दिल की गहराइयों से निकले पवित्र और निर्मल आँसुओं से अपने परमप्रिय बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र चरण-कमलों का स्नान कराना पिताजी का नितनेम (नित्य का नियम) था।
इस पवित्र अनुभव के बाद पिताजी भक्ति रस में लीन रहने लगे थे। वे प्रतिदिन अपने आंसुओं से बाबा जी के पवित्र चरणों को स्नान कराते और फिर उस चरणामृत का जी भर कर पान करते। भौतिक रूप से अपने जीवन के अन्तिम दिन तक उन्होंने इस पवित्र नित्य नियम को कभी भी नहीं छोड़ा।
जनम जनम की हउमै मलु हरउ॥
बाबा जी के चरणामृत से उन्होनें आन्तरिक और बाहरी, दोनों रीतियों से स्नान किया। यह विनम्रता का अमृत था जो उन्होंने जी भर कर पिया। यह अमरता के अमृत में लगाई गयी एक नाशवान् की डुबकी थी।
शरीर के इस चमत्कारिक प्रवाह के प्रभाव से पिताजी का विनम्र हृदय बाबा जी के चरण-कमलों का आवास बन गया था। ऐसा हृदय जो अहंकार और अज्ञानता से मुक्त था। विनम्रता के इस अद्भुत प्रभाव से उनका हृदय नाम से, शरीर अमृत से और आत्मा प्रकाश से पूरित थी। और फिर इस विनम्र हृदय से एक अति करुणामयी पुकार दया व प्रेम के स्वरूप, गरीबों के मसीहा, कलियुग के मालिक, पातशाहों के पातशाह श्री गुरु नानक साहिब के चरणां में गूंज उठी-
बाबा नानक बख़्श लै॥