दिव्य मौन
बाबा जी का मौन रहस्यमय होता था। वह दिव्य रूप से विस्फोटक था। इस से युग-युग के आध्यात्मिक विश्वास फूट पड़ते थे- प्रत्यक्ष हो जाते थे। प्रत्येक महान् विचार के व्यावहारिक अनुवाद के ये अप्रतिम उदाहरण थे। उनका दिव्य मौन एक गर्जना होता था, जो अहं को जड़ से उखाड़ पेंफकता था। मौन के द्वारा भगवद्-प्राप्ति के लिए अहम् के विनाश की शिक्षा देने के लिए उन्होंने एक सत्य के जिज्ञासु के जूते अपनी पवित्र दाढ़ी से साफ किए।
यह उस समय की बात है, जिस समय एक ट्टषि ने अपना सम्पूर्ण जीवन तपस्या में गुज़ार दिया था, पर कुछ प्राप्त न होने के कारण उस ने प्रभु से इसका शिकवा किया था। अपनी अंतरात्मा के आदेशानुसार वह बाबा जी के पवित्र स्थान पर पहुँच गया था, जहाँ पर बाबा जी तपस्या कर रहे थे। बाबा जी 24 घण्टों में कुछ क्षणों के लिए ही अपने भौरे (तपस्या के स्थान से) से बाहर आते थे। जिस समय बाबा जी बाहर आए तो ट्टषि ने प्रणाम किया तथा प्रार्थना की कि वह किसी ईश्वरीय आदेशानुसार उनके समक्ष उपस्थित हुआ है। वह भगवद्-प्राप्ति न होने का कारण जानना चाहता है। बाबा जी बोले नहीं, परन्तु जिस स्थान पर ट्टषि ने जूते उतारे हुए थे, वहाँ पर उस के जूतों को उन्होंने अपनी पवित्र दाढ़ी से साफ किया व पुनः उस भौरे में प्रविष्ट कर गए। इस दृश्य को देखकर ट्टषि बुरी तरह से तड़प उठा तथा उसे भगवद्-प्राप्ति के सम्बन्ध में गुरु नानक जी के दर की युक्ति समझ आ गई।
मिलदी दात गरीबी दी।’
उन्होंने इस ईश्वरीय मौन द्वारा ट्टषियों को सच्चे त्याग, वैराग्य व नम्रता की महान् शिक्षा दी थी। उनकी रूहानी खामोशी, सत्य की अभिलाषा रखने वालों तथा अंधकार में भटकती आत्माओं के लिए ईश्वरीय अनुभूति थी। उनका मौन रूहानी विस्मय, रूहानी करिश्मा व रूहानी चमत्कार होता था।
बाबा जी अपने सरल व विनम्र स्वभाव के कारण, मौन द्वारा सभी प्रश्नों का उत्तर स्पष्ट रूप में देते थे।