रूहानी चमत्कार
बाबा जी ने किसी को भी निराश नहीं किया था। इस पृथ्वी से दैहिक रूप से उनका अलोप हो जाने के चार वर्ष उपरान्त् सन् 1947 में देश का बँटवारा हो गया। यह बहुत आश्चर्यजनक बात है कि पाकिस्तान से आने वाले उनके सहस्त्रों श्रद्धालु अपने परिवारों सहित, बाबा नंद सिंह जी महाराज के पवित्र आश्रय में होने के कारण, बिल्कुल सुरक्षित रहे। उनके हज़ारों श्रद्धालु सिख, हिन्दू व मुस्लिम दूर-दूर के स्थानों पर आर-पार हुए परंतु किसी के जीवन की हानि नहीं हुई तथा न ही कोई घायल हुआ था। प्रत्येक को महारक्षक बाबा नंद सिंह जी महाराज की अलौकिक रक्षा का अनुभव हुआ। इस प्रकार सैंकड़ों लोगों ने अपने विचित्रा अनुभव मेरे आदरणीय पिता जी को सुनाए थे। मुझे भी इन घटनाओं को सुनने का अवसर मिला है।
इस पृथ्वी से कई दशक पहले ही दैहिक रूप में अदृश्य हो जाने के पश्चात् भी यह कैसी लीला है कि जो सदैव ब्रह्मचारी रहे, पहले जिन्होंने कभी गृहस्थ धारण नहीं किया था, जिनका कोई परिवार नहीं था, उन्होंने अपने लाखों श्रद्धालुओं के परिवारों की माँ-बाप की तरह रक्षा की हो। यह वास्तव में एक चमत्कार है।
भौतिक पदार्थों के बिना ही बाबा जी प्रभु के दरबार में सर्वोच्च ‘चानण मीनार’ के रूप में चमकते रहे।
कलियुग के इस अंधकारमय युग में बुराइयों की विध्वंसकारी शक्तियों के बीच में बाबा नंद सिंह जी महाराज ने गुरु नानक पातशाह के नाम की ज्योति को शिखर पर जाग्रत रखा। कलियुग का यह भयानक तूफान बाबा नंद सिंह जी महाराज की जाग्रत ज्योति के समीप आने का साहस नहीं कर सका।
उन्होंने संसार का त्याग कर दिया था तथा किसी भी वस्तु को अपना नहीं बनाया था। उनसे पूर्व किसी भी फकीर या दरवेश ने बाबा नंद सिंह जी महाराज की तरह रूहानियत के खज़ानों के किवाड़ खोलकर उनकी अजड्ड धारा नहीं बहाई थी।