महान् कृपा
एक बार छोटे ठाठ में दीवान की समाप्ति हो चुकी थी। बाबा जी को उठ कर जाना था। मेरे मन में एक प्रबल इच्छा जाग्रत हुई। मैंने मन ही मन बाबा जी से प्रार्थना करनी आरम्भ कर दी कि- “बाबा जी अगर आप हमारे हृदयों को जानने वाले हो तो मुझे अपने पवित्र चरण-कमलों को चूमने का अवसर दीजिए।’ मैं प्रथम पंक्ति में बैठा था, ज्यों ही बाबा जी मेरे समीप से गुज़रने लगे तो वह मेरे सामने रुक गए। मैं झटपट उन के पवित्र चरणों पर गिर पड़ा तथा बाबा जी के पवित्र चरणों को चूमने लगा। भाई रत्न सिंह जी कलेराँ वाले मुझ से कहने लगे, “ऐ नवयुवक! यह क्या कर रहा है?” परन्तु दयालु बाबा जी ने हाथ के संकेत से उसे मना किया। जब मेरे मन की संतुष्टि हो गई तो बाबा जी ने अपनी उदार कृपा-दृष्टि से मेरी ओर देखा व आगे बढ़ गए।
बाद में मुझे मालूम हुआ कि बाबा जी किसी को भी अपने चरणों को स्पर्श करने की आज्ञा नहीं देते थे। यह घटना मेरे जीवन का मुख्य स्तम्भ, विश्वास व आश्रय बन चुकी है।
उन्होंने मुझ पर अपार कृपा व करुणा करने के लिए अपने नियमों को छोड़ दिया था। वे शीघ्र ही इस भौतिक संसार से प्रस्थान करने वाले थे। इसलिए वह मुझे अपनी अपार कृपा व करुणा से वंचित नहीं रखना चाहते थे। बाबा जी त्रिकालदर्शी थे, वे अन्तर्यामी थे। उन्होंने मेरी प्रबल इच्छा की पूर्ति हेतु अपने नियमों में परिवर्तन किया था।
अपनी श्रद्धा अर्पित कर मैंने ऊपर देखा। जिस अगाध करुणा, दया और प्रेम के साथ उन्होंने मुझ पर अपनी कृपा-दृष्टि डाली थी, उसे मैं अपने जीवन की सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ अब भी स्मरण करता हूँ।
मैं इस दृश्य का शब्दों में वर्णन करना नहीं जानता। हाँ, मैं पाठकों से यह अनुभव ही बाँट सकता हूँ कि बाबा नंद सिंह जी महाराज ने अपनी चमत्कारी तथा आत्मा को आन्दोलित करने वाली पवित्र निगाहों से मेरी खाली झोली कृपा तथा आशीर्वादों से भर दी थी। आज इस घटना को घटित हुए 50 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं, परन्तु यह कृपा व आशीर्वाद मेरे साथ-साथ ही रहे हैं। अगर मुझे किसी आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है तो आज भी मैं बड़ी विनम्रता तथा कृतज्ञता से स्वीकार करता हूँ कि यह उन चमत्कारी पवित्र निगाहों का आशीर्वाद ही है, जिस की स्मृति मेरी आत्मा के भीतरी पट में अभी भी ताजा है।