अलौकिक अदृश्य पहरा
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने बस्तियों से दूर एकान्त स्थानों में रहकर भक्ति करते हुए पूर्ण आयु व्यतीत कर दी थी। बाबा जी एकान्त स्थान में ही बैठ कर भक्ति किया करते थे। अगर उन के समीप उस समय जाने का कोई प्रयास भी करता तो उसे सिंह के दहाड़ने की आवाज़ सुनाई देती या कोई नाग देवता पहरा देते हुए दिखाई देता। भय व आदर से वह व्यक्ति वापस आ जाता। इस प्रकार उनकी भक्ति में विघ्न डालने का कोई साहस नहीं करता था। अकाल पुरुष स्वयं भक्ति में लीन रहने वाले अपने परम प्रिय बाबा नंद सिंह जी महाराज के लिए रक्षक व पहरेदार बन जाते थे।
बाबा नंद सिंह जी महाराज ने अपना सभी कुछ प्रभु-प्रीतम को अर्पण किया हुआ था। वह सदैव वाहेगुरु जी के सिमरन में लीन रहते थे। ईश्वरीय पहरेदारी का अपने महान् भक्त की सेवा व रक्षा करना एक आश्चर्यजनक बात है। अगर बाबा नंद सिंह जी महाराज प्रभु की प्रेमाभक्ति करते थे तो प्रभु जी उन को स्नेह करते थे। अगर बाबा जी गहरी समाधि में लीन रहते तो प्रभु भी अपने प्रिय अनुयायी की सेवा में उपस्थित रहते थे। प्रभु व उसका भक्त एक रूप हैं, कोई दो रूप नहीं हैं। इस प्रकार प्रभु का अपने भक्त की सेवा करना, अपनी सेवा करना है।