बाबा जी द्वारा अपने प्रचार
व प्रशंसा की अनुमति न देना
Gurmukh Sada Jionday Rehandey Han
History is written on the dead. Gurmukhs perpetually live; they live through eternity.
-Baba Nand Singh Ji Maharaj
बाबा जी कहा करते थे, “जिस प्रकार बिना निमन्त्राण भी भँवरे फूलों के आस-पास इकट्ठे हो जाते हैं, परवाने बिना बुलाए दीपक के प्रकाश के पास आ जाते हैं, उसी प्रकार गुरु नानक साहिब जी की विश्व-ज्योति अभिलाषी आत्माओं को अपने निकट ले आती है। प्रचार करने, पत्रा लिखने या निमन्त्राण-पत्रा भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
उन्होंने कभी भी अपने प्रचार की अनुमति नहीं दी। वह कभी किसी नगर या घर में नहीं ठहरे। उन्होंने अपने विषय में कभी भी लिखने की अनुमति नहीं दी तथा न ही अपनी प्रशंसा में किसी संत को शब्द-गायन करने की अनुमति दी। आपने न ही भोजन पकाने व भवन बनाने की आज्ञा दी। वे स्पष्ट शब्दों में फकीर थे। उन के पास केवल प्रभु-प्रेम था तथा वे प्रभु के अतिरिक्त किसी का आश्रय नहीं लेते थे। इसीलिए आज लाखों लोग उन की पूजा करते हैं।
एक बार एक विद्वान प्रोपेफसर ने बाबा जी से उनके जीवन के विषय में लिखने के लिए आज्ञा माँगी तो बाबा जी ने इन्कार कर दिया तथा मुस्करा कर कहने लगे- “एक बाहरी जीवन लिखने का क्या लाभ? बाबा फरीद जी ने प्रभु प्राप्ति के लिए 12 वर्ष कुएँ में लटक कर तपस्या की थी। एक जीवनीकार यही लिखेगा कि उन्होंने 12 वर्ष जंगल में भक्ति की थी। उसको यह सहज ज्ञान नहीं होगा कि इस कठिन भक्ति के समय बाबा फरीद जी को क्या-क्या रूहानी अनुभूतियाँ हुई थीं।”
उनका आत्म-लोप पूर्ण था। उन्होंने कभी अपनी जीवनी लिखने या फोटो उतारने की आज्ञा नहीं दी। उन्होंने एक बार कहा था-
गुरुमुख सदा जिऊँदे रहन्दे हन।”