किसी आध्यात्मिक पद का दावेदार न होना
बाबा जी ने स्वयं को कभी गुरु या संत नहीं कहलवाया था। इसीलिए कभी किसी ने उनको गुरु या संत कहने का साहस नहीं किया था। उन्होंने अपनी हजूरी में संत की स्तुति में शब्द-गायन की आज्ञा भी नहीं दी थी। उन्होंने कभी किसी से नतमस्तक प्रणाम नहीं करवाया था। आप कहा करते थे- “मैं सच्चा सिख बनने का प्रयास कर रहा हूँ तथा यह मार्ग बड़ा कठिन है।”
श्री गुरु नानक साहिब व श्री गुरु ग्रंथ साहिब की युग-युगों तक रहने वाली इलाही शान को प्रकट करने के लिए, बाबा जी अपनी रूहानियत व महिमा को छुपा कर रखते थे। परन्तु वे अन्तहीन शक्तियों के स्वामी थे। उन की इलाही शान इतनी थी कि देखने वाले पर चमत्कारी रूहानी प्रताप का प्रभाव पड़ता था।
बाबा जी रूहानी प्रताप के पुंज थे।
सर्व साँझे बाबा नंद सिंह जी महाराज ने सब कुछ त्याग दिया था। वे अपने पास कुछ नहीं रखते थे। प्रभु-नाम की अमृत दौलत से वे सम्पूर्ण मानवता व सृष्टि पर कृपा करते थे। बाबा जी पर गुरु नानक देव जी की अपार कृपा थी। उन्होंने श्री गुरु नानक जी के अमृत-नाम की अपार कृपा व आशीर्वाद की वर्षा की। स्वयं को गुप्त रखा तथा जरा भी गर्व नहीं किया।
यह सबसे अलौकिक तथा आश्चर्यचकित करने वाला करिश्मा है कि बाबा नंद सिंह जी महाराज ने सब इलाही कृपाएँ व दातें लुटा दीं, पर गुरु नानक देव पातशाह के नाम पर अपना नाम कहीं नहीं आने दिया।
यह शिखरस्थ प्रेम है और इस तरह का उदाहरण इस दुनिया के तख्त पर कहीं मौजूद नहीं।