महान कृपा
यह घटना 28 अक्टूबर 1989 की है। हमारे आवास, मकान नं0 203 सैक्टर 33 ए चण्डीगढ़ में बाबा नंद सिंह जी महाराज का पवित्र प्रकाश-उत्सव मनाया जा रहा था। मैं उस समय श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की पवित्र हजूरी में सेवा कर रहा था। मैं ‘हुक्मनामा’ पढ़ चुका था और सटीक साहिब (लिखित टीका) की सहायता से हुक्मनामा के अर्थों को समझने की कोशिश कर रहा था कि तभी बाबा नंद सिंह जी महाराज की आकाशवाणी इस प्रकार से सुनाई दी-
गुरु को समझने की कोशिश कर रहे हो?
कोई गुरु को पढ़ सकता है क्या?
कोई गुरु को समझ सकता है क्या?
गुरु को तो गुरु ने भी समझने और पढ़ने की कोशिश नहीं की।
जब बाबा नंद सिंह जी महाराज ने यह फरमाया, तो मैं सोच में पड़ गया कि तुच्छबुद्धि इंसान गुरु को न तो कभी पढ़ सकता है और न ही समझ सकता है, क्योंकि गुरु उसकी बुद्धि की पहुँच और पकड़ से बहुत ऊँचा और परे है। फिर बाबा नंद सिंह जी महाराज ने फरमाया-
‘अपनी ‘मैं’ को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र चरणों में अर्पित कर दो। स्वयं श्री गुरु नानक साहिब आपकी अंगुली पकड़कर प्रकाश में ले जायेंगे और दिव्य ज्ञान की समझ भी देंगे। ज्ञान प्राप्त करने के लिए भले ही संसार भर की लिखित पुस्तकों को एक स्थान पर एकत्रा कर लो तो भी उनसे ग्रहण किए गए ज्ञान से ईश्वरीय रहस्यों को नहीं समझा जा सकता।’
नम्रतास्वरूप श्री गुरु नानक साहिब नम्रता पर ही रीझते हैं, वे तो दीन से भी दीन व्यक्ति की अपने शुभ हाथों से अगवानी करते हैं और उसे महान् खुशी प्राप्त कराने हेतु ईश्वरीय प्रेम की तरफ ले जाते हैं।
जिस हृदय में नम्रता का वास है वहाँ सतगुरु की दया निरन्तर बरसती रहती है।
‘अहंकार और मैं’ को सतगुरु के पवित्र चरणों में त्याग देने से आत्मा को सांसारिक बंधनों से छुटकारा मिल जाता है। फिर, एक नया अद्भुत दिव्य संबंध जन्म लेता है। उस पर सतगुरु की ऐसी अपार कृपा होती है जो संसार भर की शोभा से बढ़कर होती है। हज़ारों सूर्यों की रोशनी भी उस शोभा के सामने फीकी पड़ जाती है। इस अनोखे आत्म-समर्पण से जीवन में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन आता है। समूचा मानवी प्यार, प्रभु प्यार में बदल जाता है और सांसारिक जीवन ईश्वरीय प्रेम में रूपांतरित हो जाता है।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र चरणों में अहंकार को अर्पित किए बिना दिव्य विशेषताओं और रहस्यों को समझना असंभव है। ‘मैं’ को त्याग करके ‘तू’ में ही सच्ची ईश्वर-यात्रा, सच्ची बंदगी और सच्ची भक्ति शुरु होती है। ‘मैं और मेरी’ को छोड़ के ही ‘सब तू-ही-तू’ और उसके विस्तार की समझ उत्पन्न होती है। तब सतगुरु की अपार शक्ति ही तुम्हारी कृपा बन जाएगी। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी से प्यार करने वाले व्यक्ति को सतगुरु का सहारा प्राप्त होता है और सतगुरु हमेशा ही उसके अंग-संग बने रहते हैं।
साध संगत जी, मैं पूरी विनम्रता से यह कहना चाहता हूँ कि साधारण बोध (ज्ञान) वाले व्यक्ति को गुरु तथा गुरु की आंतरिक ज्योति के बारे में ज्ञान हो ही नहीं सकता। यह रहस्य उसकी सोच और समझ से बाहर रहता है। यह रहस्य तो श्री गुरु नानक साहिब जी की अपार कृपा से ही प्राप्त होता है।
अद्भुत रहस्यों को समझ लेने के बाद फिर इस संसार में जानने, समझने और देखने योग्य कुछ भी नहीं रह जाता।
आओ! हम अपनी ‘मैं और मेरी’ को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र चरणों में भेंट कर दें और उनके चरणों की धूल बन जाएँ। ‘मैं और अहंकार’ रहित होकर पवित्र चरण धूलि में समा जाए और अपने प्यारे सतगुरु ‘प्रत्यक्ष गुरुओं की देह’ रूप श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के महान् प्रकाश के रस का आनंद उठाएँ।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की पवित्र और पूर्ण तौर पर सेवा करने के बाद उस शाम को मैं श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की पवित्र देह को रूमाल से ढकने लगा था कि मेरे प्यारे बाबा नंद सिंह जी महाराज की ओर से फिर आकाशवाणी हुई-
‘तुम किसको ढकने की कोशिश कर रहे हो, जिसने इस तरह के करोड़ो संसार स्वयं आप ही ढके हुए हैं, जो सभी खण्डों और ब्रह्माण्डों को ढकता है और जो सबसे ऊपर है, जहाँ तुम्हारी सोच पहुँच भी नहीं सकती। क्या तुम सचमुच में उसे ढक सकते हो?’
‘हर इंसान कर्मो का पुतला है। तुम भी अपने कर्मों के पुतले हो। अच्छे-बुरे कर्म इस जन्म के ही नहीं, पिछले जन्म और युग-युगान्तरों के जन्मों के भी इकट्ठे हुए होते हैं। मनुष्य के पापों की न खत्म होने वाली यह नदी बह रही है। इंसान तो अपने पापों की नदी को भी नहीं ढक सकता तो वह फिर संसार के रचने वाले को कैसे ढक सकेगा?’
‘रूमाले को एक तरफ किए बिना ही यदि तुम ‘प्रत्यक्ष गुरुओं की देहस्वरूप’ श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का सच्चे मन, नम्रता व श्रद्धापूर्वक पूरा सम्मान करते हुए अपना मस्तक उनके पावन चरणों पर रख देते हो तो बिना श्रम के बहुत सारा आध्यात्मिक लाभ पा सकते हो; जिसकी तुम सेवा कर रहे हो यह उसी असीम परमात्मा की बख़्शिश है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के चरणों में सच्चा विश्वास और सच्ची आराधना से मिलने वाले सुफल साधारण इंसानी सोच से परे है।’
एक बार बाबा नंद सिंह जी महाराज ने संगत से पूछा,
सभी दुविधा में पड़ गए। भाई रतन सिंह जी ने बाबा जी के आगे विनती की-
‘गरीब निवाज़! आप ही कृपा करो।’
बाबा जी ने फिर पूछा,
स्पष्ट उत्तर इस प्रकार था- जीतने वाला, जीत प्राप्त करने वाला। महान् बाबा जी ने फिर फरमाया- ‘हृदय की गरीबी सब कुछ जीत लेती है। यह तो परमात्मा को भी जीत लेती है। इस कारण नम्रता और गरीबी परमात्मा से भी बड़ी है।’
नानक सो जनु सचि समाता।।
ततु गिआनु तिसु मनि प्रगटाइआ।।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पर पूरी आस्था रखने वालों के बेड़े पार हैं।
बाबा जी के ऊपर कहे गए वचनों से यह प्रकट हो जाता है कि किस तरह की नम्रता, गरीबी, सत्कार, विश्वास, निश्छल आस्था और प्रेम के साथ अपने साहिब, अपने मालिक, अपने प्रभु, अपने सतगुरु व अपने निरंकार श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की सेवा करनी चाहिए।